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मणिपुर: कुकी, मैतेई समुदाय के बीच जारी हिंसा का पूर्वोत्तर के बाक़ी राज्यों में क्या हो रहा है असर?

Manipur: What is the impact of ongoing violence between Kuki, Meitei communities in other North Eastern states?

Shailendra Rajput by Shailendra Rajput
July 29, 2023
in देश, समाज
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मणिपुर: कुकी, मैतेई समुदाय के बीच जारी हिंसा का पूर्वोत्तर के बाक़ी राज्यों में क्या हो रहा है असर?
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39 साल की एन अंजलि (बदला हुआ नाम) के लिए बीते शनिवार की सुबह बेहद दहशत भरी साबित हुई.

मिज़ोरम की राजधानी आइज़ोल में वो अपने बेटे के साथ रहती हैं. वो मणिपुर के मैतेई समुदाय से हैं लेकिन आइज़ोल में बस गई हैं.

शनिवार की सुबह जब अंजलि ने सुना कि मैतेई समुदाय के कई लोग मिज़ोरम छोड़कर भाग रहे हैं तो एकाएक उनकी सामान्य दिनचर्या पर विराम लग गया.

दरअसल, मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच चल रही जातीय हिंसा का असर अब मिज़ोरम समेत पूर्वोत्तर के कई राज्यों में दिखने लगा है.

मिज़ोरम में जनजातीय लोगों की नाराज़गी और विरोध को कई लोग खतरे का संकेत मान रहे हैं.

ये नाराज़गी इस कदर है कि पीस एकॉर्ड एमएनएफ़ रिटर्नीज़ एसोसिएशन (पीएएमआरए) नामक संगठन ने शुक्रवार को एक बयान जारी कर मिज़ोरम में रहने वाले मैतेई लोगों से कहा कि “वो अपनी सुरक्षा के मद्देनज़र मिज़ोरम छोड़ दें वर्ना उनके साथ अगर कोई हिंसा होती है तो उसकी जवाबदेही वो नहीं लेंगे.”

पीएएमआरए पूर्व भूमिगत मिज़ो नेशनल फ्रंट मिलिटेंट्स से जुड़ा एक प्रभावी संगठन है.

मिज़ोरम में डरे हुए हैं मैतेई

मणिपुर में दो कुकी महिलाओं को भीड़ द्वारा निर्वस्त्र कर परेड कराने का एक वीडियो जब से वायरल हुआ है तब से पूर्वोत्तर के जनजातीय लोगों भारी नाराज़गी है और वहां के मैतेई लोगों में दहशत है.

एक हज़ार से ज़्यादा मैतेई लोग आइज़ोल छोड़कर जा चुके हैं.

मिज़ोरम में अचानक बने तनाव भरे माहौल पर अंजलि ने केवल इतना कहा कि शनिवार के बाद से डर की वजह से वो एक रात भी ठीक से सो नहीं पाईं.

अंजलि ने कहा, “अब तक मिज़ोरम में सब ठीक चल रहा था लेकिन अब हरदम डर का साया है.”

पीएएमआरए द्वारा मिज़ो में लिखे गए बयान में कहा गया कि मणिपुर में ज़ो जातीय समुदाय के खिलाफ हिंसा से मिज़ो लोगों की भावनाएं बहुत आहत हुई हैं. लिहाजा अब मैतेई लोगों के लिए मिज़ोरम में रहना सुरक्षित नहीं है. इस बयान के बाद शनिवार दोपहर से मैतेई लोगों ने मिज़ोरम छोड़ना शुरू कर दिया है.

ज़ो समुदाय में कुकी, चिन और मिज़ो लोग आते हैं.

प्रदेश सरकार के आश्वासन के बाद भी डर क़ायम

ऑल मिज़ोरम मणिपुरी एसोसिएशन की एक जानकारी के अनुसार, मिज़ोरम में क़रीब तीन हज़ार मैतेई लोग बसे हैं जिनमें छात्रों से लेकर सरकारी और प्राइवेट नौकरी करने वाले लोग भी शामिल हैं.

राजधानी आइज़ोल में क़रीब दो हज़ार मैतेई लोग रहते हैं.

ऑल मिज़ोरम मणिपुरी एसोसिएशन के एक नेता ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर बताया, “मिज़ोरम सरकार ने भले ही मैतेई लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का वादा किया है लेकिन लोग बहुत डरे हुए हैं.”

उन्होंने बताया कि आधे से ज़्यादा लोग मिज़ोरम से चले आए हैं. क्योंकि कुछ स्थानीय संगठन प्रेस विज्ञप्ति जारी कर चेतावनी दे रहे हैं. हमारे संगठन की मिज़ोरम के गृह आयुक्त के साथ दो-तीन बार बैठक हुई है लेकिन फिर भी हम अपने मैतेई लोगों को मिज़ोरम में रहने का सुझाव नहीं दे सकते.

हालांकि पीएएमआरए ने स्पष्ट किया है कि उनके द्वारा जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति महज़ एक सलाह थी.

मिज़ोरम में रहने वाले मैतेई लोगों से सावधानी बरतने का अनुरोध किया गया था क्योंकि मणिपुर में जारी हिंसा के कारण मिज़ोरम में जनभावनाएं उनके ख़िलाफ़ हैं. लेकिन किसी को भी मिज़ोरम छोड़ने के लिए कोई आदेश या नोटिस नहीं दिया गया था.

मिज़ोरम में मैतेई लोगों को प्रदेश छोड़ने के फ़रमान के जवाब में ऑल असम मणिपुरी छात्र संघ नामक संगठन ने भी असम की बराक घाटी में बसे मिज़ो लोगों से कहा कि वो ये इलाका जल्द से जल्द खाली कर दें. हालांकि महज़ कुछ घंटे बाद ही छात्र संगठन ने अपना बयान वापस भी ले लिया था.

इसके अलावा मणिपुर में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों को लेकर मंगलवार को असम के दिमा हसाओ ज़िले में हजारों की संख्या में जनजातीय महिलाएं सड़कों पर उतर आईं और पीड़ितों के लिए न्याय की मांग की.

पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा फैलने का ख़तरा

मणिपुर की हिंसा को लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों में जिस तरह का विरोध सामने आ रहा है उसे उत्तर पूर्वी सामाजिक अनुसंधान केंद्र के निदेशक वाल्टर फर्नांडीस एक खतरे के तौर पर देख रहे हैं.

वो कहते हैं, “जिस तरह से मणिपुर में इतने लंबे समय से हिंसा हो रही है उससे मुझे लगता है कि कुछ ऐसी राजनीतिक ताकतें हैं जो इस संघर्ष को व्यापाक पैमाने पर फैलाना चाहती हैं. यह एक ऐसी स्थिति है जिसे हमें रोकना चाहिए. कुछ ताकतें निहित स्वार्थ में स्थानीय मुद्दों का इस्तेमाल कर रही हैं.”

उत्तर पूर्वी भारत के इन सात राज्यों में अलगाववाद के कारण लंबे समय से अशांति रही है.

लेकिन 2014 के बाद से क्षेत्र के सबसे बड़े नगा विद्रोही संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नगालैंड यानी एनएससीएन-आईएम के साथ सरकार ने फ्रेम वर्क समझौता किया.

इसके अलावा कई और राज्यों के चरमपंथियों को भी मुख्यधारा में लाने के दावे किए गए.

कई राज्यों से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (अफ्स्पा) को भी हटाया गया. लिहाजा इस तरह से लोगों को ये लगने लगा था कि पूर्वोत्तर राज्यों में शांति लौट रही है.

लेकिन मणिपुर हिंसा ने शांति की उन तमाम उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.

पूर्वोत्तर क्षेत्र की शांति से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए वाल्टर फर्नांडीस कहते है, “पिछले कुछ सालों में यहां कुछ संघर्ष रुके हैं और स्थिरता देखने को मिली हैं, लेकिन साथ ही कुछ अन्य सांप्रदायिक संघर्ष भी बढ़े है. ऐसी ताकतें हैं जो न केवल मणिपुर में बल्कि अन्य जगहों पर भी अन्य संघर्षों को हवा दे रही हैं.”

“उदाहरण के लिए असम की स्थिति देख लें. यहां साम्यवाद हमारे जातीय मुद्दों में किस प्रकार प्रवेश कर रहा है. ये ताकतें अपने राजनीतिक उदेश्य के लिए जातीय संघर्ष को अब सांप्रदायिक संघर्ष की तरफ मोड़ रही हैं.”

मिज़ो-कुकी लोगों के बीच जातीय बंधन

मणिपुर में जातीय हिंसा के कारण इस समय मिज़ोरम में 12 हज़ार 584 चिन-कुकी-ज़ो लोगों ने शरण ले रखी है.

मिज़ोरम के मिज़ो लोग मणिपुर के कुकी-ज़ोमिस जनजातियों के साथ एक गहरा जातीय बंधन साझा करते हैं.

ऐसा कहा जा रहा है कि बेघर हुए इन चिन-कुकी और ज़ो पीड़ितों से मिज़ोरम की आबादी का एक बड़ा वर्ग सहानुभूति रखता है और वो मैतेई लोगों से बेहद ग़ुस्सा भी हैं.

मिज़ोरम,असम जैसे राज्यों पर पड़ने वाले इस असर पर वरिष्ठ पत्रकार समीर के पुरकायस्थ कहते हैं, “पूर्वोत्तर राज्यों में जनजातीय लोगों की जनसंख्या जिन क्षेत्रों में जिस हिसाब से बसी हुई है उस पर निर्भर करता है कि वहां इस हिंसा का क्या असर पड़ेगा.”

“बात जहां तक मिज़ोरम की है तो मिज़ो लोग न केवल कुकी लोगों के साथ जातीय बंधन में है बल्कि दोनों एक ही ईसाई धर्म से बंधे है. लिहाज़ा कुकी लोगों पर हमला एक तरह से मिज़ो लोगो की भावना को सीधे चोट पहुंचाती है. इसलिए मिज़ोरम में इसका असर दिखना लाज़मी है.”

वो कहते हैं, “असम के कुछ इलाकों में भी दोनों जनजातियों के लोग रहते हैं तो वहां थोड़ा तनाव हो सकता है. लेकिन बाकी के राज्यों में इस हिंसा का सीधा कोई असर फिलहाल नहीं दिख रहा है. क्योंकि जनजातीय समाज में सरहदबंदी काफी अलग तरह की होती हैं.”

हालांकि तीन मई से मणिपुर में शुरू हुई हिंसा के बाद मेघालय में भी पुलिस ने अशांति फैलाने के आरोप में कम से कम 16 लोगों को गिरफ़्तार किया था.

मेघालय में शुरुआती तनाव को देखते हुए राज्य सरकार को कई उपाय करने पड़े. क्योंकि कुकी-मैतेई के बीच हिंसा, जनजाति और गैर जनजाति के बीच की लड़ाई बन गई है.

ऐसे में पूर्वोत्तर राज्यों में बसे ट्राइबल समुदाय की नाराज़गी का क्या असर हो सकता है?

इस सवाल का जवाब देते हुए समीर कहते हैं, “मणिपुर की हिंसा को लेकर मैतेई समुदाय के खिलाफ़ जनजातीय लोग नाराज हैं. खासकर दो कुकी महिलाओं को नग्न कर परेड करवाने की घटना सामने आने के बाद से तो जनजातीय लोग मिज़ोरम, असम, मेघालय समेत सभी राज्यों में अपना विरोध जता रहे हैं.”

“लेकिन अगर पहले के कई उदाहरण देखें, जैसे 2001 में अलगाववादी संगठन एनएससीएन-आईएम के साथ मणिपुर में जब बड़ा झगड़ा हुआ तो उसका नगालैंड में कोई प्रभाव नहीं पड़ा. क्योंकि नगा लोगों ने यह कहा कि यह मसला तांगखुल जनजाति के लोग देख लेंगे. क्योंकि एनएससीएन-आईएम के प्रमुख नेता तांगखुल जनजाति के हैं. कुकी-नगा हिंसा के दौरान भी पूर्वोत्तर राज्यों में कोई प्रभाव नहीं पड़ा.”

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