तीन राज्यों में कैसे खिला कमल ? मोदी की गारंटी पर लगी विजयी मुहर की जानकारी सामने आई
भारतीय जनता पार्टी विश्व की सबसे बड़ी पार्टी सिर्फ कागज़ों में नही है। मैं यह क्यों कह रहा हूँ। उसके कारणों को समझिए। आज तेलांगाना को छोड़ दें तो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी ने अपनी जीत का परचम लहराया है। कर्नाटक की हार के बाद यह जीत बीजेपी को खुद के लिए किए सबक का सुखद परिणाम है। जैसी कि ज्ञात है कर्नाटक चुनाव बीएस येदियुरप्पा की अगुवाई में लड़ा गया था। इन्हें भ्रष्टाचार और सरकार में बेटे की दखलंदाजी के चलते हटाया गया था। दरअसल कर्नाटक वह राज्य है जहाँ से बीजेपी ने दक्षिण की राजनीति में प्रवेश किया था। यहां उसकी शुरुआत 2004 में हुई थी। दूसरी सरकार को गिराने अन्य राजनीतिक जोड़ -तोड़ की रणनीति यहां येदियुरप्पा ही बनाते आये थे। ऑपरेशन लोट्स येदियुरप्पा की देन है जिसका प्रयोग बीजेपी ने और भी राज्यों में किया है। जब बीजेपी इस राज्य से चुनाव हारती है। वो इसके कारणों पर अध्ययन करना शुरू कर देती है। एक चेहरे को आगे करना और वह जब पार्टी संगठन से ऊपर जाकर सोचने लगता है तो फिर उसके गलत परिणाम निकलकर आने लगते हैं। इस सबके चलते चाहे येदियुरप्पा या पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती हों। इन्होंने आगे जाकर पार्टी से बगावत कर न सिर्फ नुकसान पहुंचाया इसके चलते एक अलग पार्टी खड़ी कर संगठन के सामने एक चुनौती भी पेश की। येदियुरप्पा को लेकर बीजेपी हाई कमान नरम रुख अपनाकर चल रहा था। इस राज्य को लेकर किए अधिकतर निर्णयों में येदियुरप्पा की सहमति होना जरूरी मान लिया गया था। इसके चलते प्रदेश में होने वाली उथल-पुथल का बीजेपी हाईकमान जानकार भी अंजान बने रहते हैं। जब इसकी नाराजगी सामने आती है तब तक इस राज्य से सरकार छीनकर कांग्रेस के हाथों में चली जाती है।
कर्नाटक में लिए गए निर्णय को लेकर बीजेपी हाईकमान गहरा मंथन करती है। इन सबके निचोड़ या कहें सबक लेकर संगठन 2023 में 5 राज्यों के चुनाव को लेकर मैदान में उतरती है। तीन राज्यों की प्रचंड जीत और शेष दो राज्यों में दस्तक देने वाली पार्टी ने इस पर किस तरह से काम किया, आइए उसे समझने की कोसिस करते हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने इस पर कदम उठाते हुए मुख्यमंत्री के बगैर चेहरे के मैदान में उतरना सही समझा। चुनाव की दस्तक होते ही गुटों के आधार पर विधानसभा वार उम्मीदवार अपने मुखिया के चेहरे का आभास कराते हैं। मध्यप्रदेश में जहाँ पहले से मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह का चेहरा था वहां उसे अलग कर बगैर चेहरे के चुनाव लड़ना जोखिम भरा निर्णय हो सकता था। चुकी कर्नाटक से सबक लेकर पार्टी निर्णय ले चुकी थी। इस स्थिति में उसके लिए बगावती स्वर पर नजर रखना बेहद जरूरी हो गया था। मध्यप्रदेश में पहले ही शिवराज, सिंधिया और शाह गुट की भनक संगठन के पास पहुंचती रहती थी। इससे निजाद पाने के लिए हाई कमान खुद की सबसे बड़ी भरोसे मंद टीम को बाहर लाती है। इस टीम को विपक्ष कभी मोदी आईटी सेल कभी आरएसएस से जुड़ा होना बताती रही है। सबको इसका अहसास है कि कोई अदृश्य शक्ति है जो सीधे जाकर मोदी को मजबूत करती है। वैसे बीजेपी ने कभी भी इसका जिक्र नही किया है। यह सब मिलकर कैसे काम करते हैं उसका भी कोई ठोस प्रमाण सामने नही आ पाया है।
प्राप्त जानकारी अनुसार 2024 के विधानसभा चुनाव को लेकर की गईं तैयारियों को चरणों मे बांटा गया। टीम का गठन होता है। प्लान के साथ यह सब विधानसभा जा -जाकर सर्वे करती हैं। इसमे मौजूदा, विधायक, मंत्री के साथ उस क्षेत्र के प्रभारी चेहरे को खोजा जाता है। जिसके लिए जीत को लेकर आश्वस्त हुए उन्हें रिपीट करने का निर्णय लिया जाता है। केंद्रीय मंत्री और ऊपर नेतृत्व से जुड़े चेहरों को मौका देना गुटवाजी पर विराम करने का हिस्सा होता है। एक चुनौती उस विधानसभा के दावेदारों के तौर पर आती है। इससे बगावत के स्वर उठना लाजिमी थे। प्रत्येक विधानसभा में मोदी टीम से जुड़ी टीम इस पर बराबर नजर बनाकर रखती है। इसमे बूथ तक में होने वाले नुकसान को खोजा जाता है। विभाग के हिसाब से इसे कवर करने का काम किया जाता है। पहला दूसरे को दूसरा तीसरे को इस तरह अलग-अलग विभागों में बंटकर जानकारियां उपलब्ध की जातीं हैं। प्रत्येक प्रत्याशी के पीछे बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व से जुड़ी टीम मिलकर काम कर रही थी। जिसकी रिपोर्ट ऊपर जाकर मिल रही थी। इसमें प्रत्याशी की उपलब्धि, उसके विरोध, खुद की पार्टी से जुड़े बगावती स्वर को जांचा परखा जाता गया। इन सबसे प्रत्याशियों को अहसास बना रहा कि मेरे पीछे शीर्ष नेतृत्व काम कर रहा है जिससे वो प्रदेश में होने वाली किसी भी हलचल से खुद को सुरक्षित मानकर चल रहे थे। साथ मे कोई गलती करने को लेकर बचकर चल रहे थे। जहां लगा कि इस विधानसभा में खुद की पार्टी से जुड़े लोग या कोई कद्दावर किसी प्रकार का नुकसान पहुंचा रहा है। उसको लेकर प्लान तय किया जाता है। जिम्मेदार को लेकर कठघरे में खड़ा किया जाता है। प्रत्याशियों द्वारा की जाने वाली चूक को शीर्ष नेतृत्व के निर्देशन से लगातार सुधार किया जाता रहता है। खुद प्रत्याशियों की सूझबूझ के साथ उनके पीछे हरदम साथ देने वाली टीम एक बेहतर परिणाम की ओर आगे बढ़ती रहती है। बीजेपी द्वारा चलाई जा रहीं योजनाओं से होने वाले लाभ, पार्टी और प्रत्याशियों पर भरोसा बनाकर सभी समीकरणों को साधते हुए 3 राज्यों की प्रचंड जीत के साथ आज भारतीय जनता पार्टी उत्सव मनाने में सफल हुई है।