सागर से लगे सिरोंजा गांव का एक पुल जिसमे हुईं हृदयविदारक घटना में भारतीय आर्मी के 9 जवान दूसरी घटना में 18 बाराती और तीसरी घटना में शासकीय माध्यमिक बम्होरी बीका के 31 बच्चे काल के गाल में समा जाते हैं। इन तीन घटनाओं में मौतों का आंकड़ा 58 से ज्यादा का है। जिसमें इलाज की दौरान कुछ घायलों की मृत्यु की जानकारी सामने आई थी। सबसे पहले 5 फरवरी 1998 को ट्रैक्टर-ट्रॉली में सवार 54 बच्चों में से 31 बच्चों के मौत के कारणों और घटना को जानते हैं। महज कुछ देर पहले जो बच्चे शादी कार्यक्रम में चहक रहे होते हैं उन्हें गंतव्य से 3 किलोमीटर की दूरी पर मौत अपने आगोश में ले लेती है। यह घटना एक उमंग से शुरू होकर अंत में 31 घरों के चिराग बुझने पर खत्म होती है। राख के ढेर में में जो रह गया उसे लेकर माँ नर्मदा और गंगा मैया ने मोक्ष का रास्ता तो प्रदान कर दिया होगा। इसमे शेष बची पीड़ा को वो हर माँ-बाप अपने सीने में दबाकर आजीवन उस दर्द का रह-रहकर अहसास करते होंगे।
सागर ब्लॉक की माध्यमिक स्कूल बम्होरी बीका में रोज की तरह अध्यापक अपनी-अपनी क्लास में बच्चों को पढ़ा रहे हैं। जनवरी माह चल रहा है सो उस कड़ाके की ठंड में अक्सर कक्षा बाहर प्रांगड़ में लगाई जाती हैं। लंच टाइम के बाद जब बच्चे ग्राउंड में खेल- कूंद करने लगते हैं। वहीं पास में शिक्षक बाहर कुर्सी डालकर बैठा करते है। इस बीच स्कूल के हेडमास्टर चिंतामन पटेल की दस्तक होती है। पटेल सर सागर तिलकगंज बगीचा के निवासी हैं जो इस स्कूल मे 5-6 साल से सेवाएं देते आ रहे हैं। आज पटेल सर का चेहरा खिला हुआ दिख रहा है। कुर्सी पर बैठे ढाना वाले राममनोहर पांडेय सर का पटेल सर से मित्रवत व्यवहार रहता है। पटेल सर का मुस्कराता चेहरा देख पांडेय सर कहते हैं क्या बात है सर, आज काफी खुश नजर आ रहे हैं। पटेल सर, हाँ! बड़ी खुशखबरी है। मेरी बच्ची अनिता की शादी तय हो गई है। परिवार बहुत अच्छा है। लड़का टीचर है जो परिवार सहित बीना में रहता है।
इस खुशखबरी को सुनकर स्टॉप पटेल सर को बधाई देने लगता है। खेल-कूंद मे मस्त विद्यार्थियों की टोली को इसकी जानकारी लगती है। इस शुभ -अवसर में शामिल होने और बधाई देने वो पटेल सर के पास आ जाते हैं। वो सब अनिता की शादी में जाने की कहने लगते हैं। पटेल सर का स्वभाव हँसमुख और मिलनसार रहता है। स्कूल के बच्चों का अपने सर से बहुत लगाव होता है। स्टॉप के साथ जब वो शादी में जाने की जिद करने लगते हैं। पटेल सर यह बात उनके घर पर पूंछने की कहते हैं। साथी शिक्षकों को भी लगता है, जैसे भी हो इन्हें शादी में शामिल होने लेकर चलते हैं।
यह बात सन 1998 की है। 5 फरवरी को विवाह का शुभ मुहूर्त निकलता है। 25 साल पहले यातायात के ज्यादा साधन नही थे। ग्रामीण इलाकों मे शादी अवसर या धार्मिक कार्यक्रमों में समूह के तौर पर ज्यादातर ट्रेक्टर- ट्राली की मदद से परिवहन हुआ करता था। चुकी बच्चों की संख्या ज्यादा थी। इस कारण मोटरसाइकिल, टेम्पो से जाना मुश्किल काम था। बच्चों को ले जाने के लिए बाग़- खेजरा के रामजी पांडेय के ट्रेक्टर – ट्राली से जाना तय होता है। आरामदायक सफर के लिए उसमें उसमे अच्छी किस्म की घास बिछाई जाती है जिसे फर्श डालकर को ढक दिया जाता है।
बच्चों की शिक्षा को लेकर एक बड़े क्षेत्र में उस समय केवल बम्होरी बीका में हाई स्कूल और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हुआ करता था। आस-पास के गांवो में स्कूल प्राइमरी तक ही थे। बाग खेजरा, बन्नाद, चावड़ा, बाबूपुरा, बेरखेरी गुरु, चितौरा और आस-पास के विद्यार्थियों को अपनी बाकी पढ़ाई पूरी करने बम्होरी बीका आना पड़ता था।
5 फरवरी शादी के दिन बच्चे मिडिल स्कूल के प्रांगण में इकठ्ठा हो जाते हैं। जाने की तैयारी होती है। वहां देखा तो बच्चे तय संख्या से ज्यादा हो जाते हैं। उनके लिए इस कार्यक्रम में जाना एक पिकनिक टूर पर जाने जैसा अनुभव था। जाने वाले बच्चों की संख्या 54-55 हो जाती है। ट्रेक्टर मालिक और उसके चालक पांडेय जी इसको लेकर चिंतित होते हैं।
वर्तमान और उस समय में बहुत अंतर आ गया है। तब लोग इतने व्यवहारिक हुआ करते थे, कोई नही चाहता था कि मेरी बजह से किसी को बुरा लग जाए। जाने के लिए कक्षा 6 से 8 तक के बच्चे थे। सबके मान का ध्यान रखकर और किसी को बुरा न लगे इसलिए सबको ट्रॉली में बैठा लिया जाता हैं। सावधानी पूर्वक ड्राइविंग कर ट्रेक्टर तिलकगंज बगीचा सागर पहुंच जाता है। शादी घर मे पहुंचने पर सबका आदर-सत्कार होता है। पटेल सर और परिवार वालों ने इन बच्चों के भोजन- पानी और ढहरने की अलग से व्यवस्था करके रखी थी। शाम को बारात आगमन होता है। इतनी संख्या में आए स्कूली बच्चों को देखकर बाराती भी खुश हो जाते हैं। बच्चे भी इस माहौल में चहक रहे होते हैं। स्वल्पाहार, भोजन उपरांत वर-बधु की जयमाला देखकर बच्चों के जाने का समय हो जाता है। बाराती-घराती सब मिलकर उन्हें खुशी-खुशी विदा करते हैं। बम्होरी से सागर आते समय बच्चों ने सावधानी बरती थी। इससे ट्रेक्टर चालक किसी भी लापरवाही से निश्चिंत हो गंतव्य की ओर रवाना होते हैं। यूनिवर्सिटी की घाटी से बचने के लिए वो सागर मकरोनिया से होकर जाते हैं। इतनी सावधानी रखने बाद क्या पता था, कि आगे चलकर इतनी बड़ी घटना सामने आने वाली है। ड्राइवर तिलकगंज के सुगम रास्ते से होकर केंट एरिया से होते हुए रजाखेड़ी, मकरोनिया से सावधानी पूर्वक ड्राइविंग करते हुए ट्रेक्टर को बड़तुमा होते हुए सिरोंजा गांव होकर आगे बढ़ने लगता है।
आगे जाने से पहले आप सबको उस मौत के पुल से जुड़ी घटनाओं के बारे में बताना चाहूंगा। ऐसा न हुआ होता तो हो सकता था यह घटना छोटे रूप में होकर निकल सकती थी। मैं जिसके बारे में बताने जा रहा हूँ वह पुल सिरोंजा गांव के आखरी छोड़ पर पड़ता है। इस पुल पर दो बड़ी घटनाएं घट चुकी थीं। जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया है। एक घटना में मिलेट्री का वाहन भैसों को बचाने के चलते पुल से नीचे गिर जाता है। जिसमे 8 से 9 जवान असमय काल के गाल में समा जाते हैं। दूसरी घटना देवरी ब्लॉक के केसली तहसील की है जहां से एक बरातियों की बस रैपुरा से लौटकर आ रही होती है। आते समय वो इस पुल के बगल से निकली पाइपलाइन जिसमे लीकेज हो जाता है। उसके पानी की बौछार का पानी बस के शीशे पर लगता है, जिससे वह अनियंत्रित होकर पुल से नीचे गिर जाती है। बस के नीचे गिरने की जोर की आवाज सुनकर सिरोंजा गांव लोग घटना के कुछ देर बाद मौके पर पहुंच जाते हैं। वो रेस्क्यू में जुट जाते हैं। इस घटना में 18 बाराती मौके पर दम तोड़ देते हैं। बाकी घायल जो पानी और दलदल में डूब रहे होते हैं उन्हें गांव वालों की मदद से बाहर निकाल लिया जाता है। उसके बाद पुलिस मौके पर पहुंचकर घायलों को जिला अस्पताल इलाज को भेजती है। घटना के तीसरे – चौथे दिन बाद इन ग्रामीणों पर बारातियों के सामान की लूट के आरोप लगाए जाते हैं। कुछ लोगों को पुलिस पूछताछ के लिए थाना ले जाती है। ग्रामीणजन इस बदनामी को बर्दाश्त नही कर पाते हैं। इस घटना में घायल हुई जबलपुर में इलाजरत महिला को जब इसकी जानकारी लगती है वो उन पर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताती है। महिला ने मीडिया को दिए बयान में बताया कि उन सबकी बजह से बाकी की जान बच पाई है। मदद के नाम पर लगे आरोप को लेकर सिरोज़ा गांव के निवासी ऐसी किसी मदद से तौबा कर लेते हैं। इस मामले का आगे जाकर बेहद दुखद परिणाम निकलकर आता है।
ट्रैक्टर सिरोंजा गांव पहुंच जाता है। मकरोनिया से बम्होरी तिराहे मार्ग के सिरोंजा गांव के आखिर छोड़ पर यह पुल पड़ता है। ट्रेक्टर गांव से निकलकर उस पुल के पास पहुंच जाता है। ट्रेक्टर चालक रामजी पांडेय सड़क के दोनो तरफ नजर दौड़ाते हैं। जब सामने से रास्ता साफ दिखाई देता है तब पांडेय ट्रेक्टर को आगे बढ़ाते हैं। ट्रेक्टर आधा पुल क्रॉस कर जाता है। इसी बीच सामने से डम्फर आता दिखाई देता है। ट्रेक्टर चालक उसको रुकने का इशारा करते हैं। डंफर सड़क के दूसरे छोर खड़ा हो जाता है। ट्रेक्टर- ट्राली अभी बीच पुल से थोड़ा ही आगे निकल पाता है इतने में डंफर चालक अचानक से गाड़ी बढ़ाने लगता है। ट्रेक्टर ड्राइवर पांडेय रुको-रुको चिल्लाने लगते हैं। इसके बाबजूद वो ट्रेक्टर के पास से होकर डंफर निकालने की कोसिस करने लगता है। डंफर ट्रेक्टर को क्रॉस करके आगे जाने लगता है। डंफर ड्राइवर बार-बार पीछे की तरफ देख रहा होता है। ट्रेक्टर चालक पांडेय इस गलती को लेकर ड्राइवर को टोकते हैं। वो उसे कुछ देर पुल किनारे खड़े रहने की कहते हैं। पर वो इस पर ध्यान नही देता है। इसी बीच डंफर चालक को कुछ आवाज सुनाई देती है और वो डंफर को तेजी से आगे बढ़ा देता है।
इसके दूसरे भाग में जानेंगे कि क्या कारण रहा जो वो डंफर वाला पुल के दूसरे तरफ रूककर अचानक से आगे बढ़ने लगता है। यह घटना कैसे होती है ? यहां से जुड़ी रहस्यमयी आवाजों और रूहानी आत्मा की सच्चाई को सामने लाऊंगा। इसमे बाकी बच्चों को कैसे बचाया जाता है साथ ही उन दो घटनाओं से जुड़ी जानकारी अगले अंक में जरूर पढ़िएगा।