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Home राजनीति

देश और धर्म में से किसी एक को चुनने की बहस क्यों छिड़ी?

Why the debate of choosing between country and religion?

Shailendra Rajput by Shailendra Rajput
July 29, 2023
in राजनीति
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देश और धर्म में से किसी एक को चुनने की बहस क्यों छिड़ी?
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ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदउद्दीन ओवैसी ने दो दिन पहले ख़ुफ़िया एजेंसियों में अहम पदों पर मुसलमान अधिकारियों के न होने से जुड़ी एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बीजेपी सरकार पर सवाल उठाए थे.

असदुद्दीन ओवैसी ने उस रिपोर्ट के स्क्रीनशॉट के साथ लिखा, “दशकों बाद पहली बार इंटेलिजेंस ब्यूरो के शीर्ष नेतृत्व में कोई भी मुस्लिम ऑफिसर नहीं होगा. ये उस संदेह की झलक है, जिससे बीजेपी मुसलमानों को देखती है. आईबी और रॉ विशिष्ट बहुसंख्यकवादी संस्थान बन गए हैं. आप लगातार मुसलमानों से उनकी वफ़ादारी का सबूत मांगते हैं लेकिन कभी उन्हें अपने बराबर नागरिक के तौर पर स्वीकार नहीं करते.”

इसी ट्वीट पर कवि और आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता कुमार विश्वास ने ओवैसी से पूछा कि अगर उन्हें इस्लाम और भारत में से किसी एक को चुनना होगा तो किसे चुनेंगे? क़ुरान शरीफ़ और संविधान में से किसी एक को चुनना होगा तो किसे चुनेंगे?

कुमार विश्वास की इस टिप्पणी को लेकर अब सोशल मीडिया पर लोग अलग-अलग प्रतिक्रिया दे रहे हैं.

दोनों नेताओं के बीच इस छोटी सी ट्विटर वॉर से ‘मज़हब बनाम मुल्क’ की बड़ी बहस को हवा मिल गई है.

क्या कह रहे हैं लोग?

कुमार विश्वास के ट्वीट पर ओवैसी ने भी जवाब दिया लेकिन उन्होंने कुमार विश्वास का नाम नहीं लिया.

ओवैसी ने अपने जवाब में कहा, “भारत की जासूसी और इंटेलिजेंस एजेंसियों में मुस्लिम अफ़सरों की कमी वाले मेरे ट्वीट पर लोगों ने बहुत सारे सवाल उठाए. मुसलमानों से पूछा जाता है कि मज़हब और मुल्क के बीच में किसे चुना जाएगा. पता नहीं कितने लोग देश की सुरक्षा का सौदा करते हुए पकड़े जाते हैं, आईएसआई (पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी) महिलाओं के फ़र्ज़ी अकाउंट बना कर इन्हें फंसा लेती है. धर्म की बात तो दूर, क्या कोई इन्हें पूछेगा कि ये अपने हवस और देश के बीच किसे चुनते हैं?”

कुछ लोगों ने कुमार विश्वास के सवालों पर ही प्रश्न खड़े कर दिए हैं.

व्यंग्यकार राजीव ध्यानी लिखते हैं, “यह एक चुनना ही तमाम समस्याओं की जड़ है कुमार भाई. मैं मनुष्य हूं, पुरुष हूं, भारतीय हूं, हिन्दी भाषी हूं, हिन्दू हूं. और भी बहुत सी पहचानें हैं मेरी. मुझे इसमें से किसी भी पहचान को बताने या उनसे प्रेम करने के लिए दूसरी पहचान को छोड़ने या पीछे रखने की कोई ज़रूरत नहीं.”

राजीव ध्यानी ने पूछा है कि उनकी (कुमार विश्वास) कई पहचाने हैं. क्या उन्हें भी रामकथा वाचक की अपनी पहचान बताने के लिए कवि और अध्यापक की पहचानों को छोड़ना होगा? तो फिर असदुद्दीन ओवैसी को भारतीय होने के लिए मुसलमान होने की पहचान छोड़ने की ज़रूरत क्यों है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) बार-बार इस्लाम को ‘विदेशी’ मज़हब बताता रहा है.

हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान मोहन भागवत ने कहा था, “कुछ धर्म भारत के बाहर के थे और हमारे उनके साथ युद्ध हुए थे, लेकिन बाहर वाले तो चले गए, अब तो सब भीतर हैं. फिर भी वे लोग बाहरी लोगों के प्रभाव में हैं. हमें समझना होगा कि वे हमारे लोग हैं. अगर उनकी सोच में कोई कमी है तो उसमें सुधार हमारी ज़िम्मेदारी है.”

सावरकर भी पितृभूमि और पुण्यभूमि की बात करते थे. यानी जो भारत में जन्मे हैं उनकी पितृभूमि तो भारत है लेकिन जो हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख नहीं हैं उनकी पुण्यभूमि भारत नहीं है. सावरकर मानते थे कि ऐसे में उनका प्यार पितृभूमि और पुण्यभूमि के बीच बँटा होगा.

सावरकर ने ‘हिन्दुत्व: हू इज अ हिन्दू’ में लिखा है, ”हमारे मुसलमानों या ईसाइयों के कुछ मामलों में, जिन्हें जबरन ग़ैर-हिन्दू धर्म में धर्मांतरित किया गया, उनकी पितृभूमि भी यही है और संस्कृति का बड़ा हिस्सा भी एक जैसा ही है लेकिन फिर भी उन्हें हिन्दू नहीं माना जा सकता. हालाँकि हिन्दुओं की तरह हिन्दुस्थान उनकी भी पितृभूमि है, लेकिन पुण्यभूमि नहीं है. उनकी पुण्यभूमि सुदूर अरब है. उनकी मान्यताएं, उनके धर्मगुरु, विचार और नायक इस मिट्टी की उपज नहीं हैं. ऐसे में उनके नाम और दृष्टिकोण मूल रूप से विदेशी हैं. उनका प्यार बँटा हुआ है.”

सावरकर के इस तर्क पर इतिहासकार सैयद इरफ़ान हबीब ने बीबीसी से कहा था, ”भगत सिंह तो नास्तिक थे और उनकी कहीं कोई पुण्यभूमि ही नहीं थी. राष्ट्रवाद और धर्म का घालमेल नहीं किया जा सकता है. धर्म बिल्कुल अलग चीज़ है. धर्म से किसी का राष्ट्रवाद प्रभावित नहीं होता है.”

कई लोग मानते हैं कि मज़हब और मुल्क में कोई टकराव नहीं है इसलिए दोनों में से किसी एक को चुनने और छोड़ने जैसी बात करना तार्किक नहीं है.

कुमार विश्वास के ट्वीट को कई लोग बीजेपी से उनकी कथित वैचारिक क़रीबी से जोड़कर देख रहे हैं.

ऐसे ही एक ट्विटर यूज़र ने लिखा है, “किसी को इस्लाम या भारत में से एक चुनने की ज़रूरत क्यों है? आप भगवद् गीता या गुरु ग्रंथ साहिब या बाइबल या संविधान में से किसी एक को चुनने पर सवाल क्यों नहीं करते? क्या आपका मनःस्थिति ठीक है कुमार विश्वास या आप मुसलमानों के प्रति नफ़रत दिखाकर बीजेपी में जाने की ज़मीन तैयार कर रहे हैं?”

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