एमपी इलेक्शन के घमाशान मे केन्द्र की बीजेपी की एंट्री, शिवराज और सिंधिया की उम्मीदों पर फिरा पानी, खेमा से दूर उम्मीदवार को शीर्ष नेतृत्व का भरोसा
एमपी में भ्रष्टाचार के आरोपों और खण्डों में बटी बीजेपी पार्टी को केंद्र ने आपने हाथों में लिया है। सिंधिया और शिवराज की प्रतिष्ठा का भी ध्यान रखा जा रहा है। डगमगाती नैया पार लगाने की रणनीति बनाई जा रही है।
मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावी समीकरण की जानकारी आरएसएस और मोदी से जुड़ी आईटी सेल से मांगी जा रही है। एमपी में भ्रष्टाचार के आरोपों में बीजेपी कर्नाटक से भी आगे चली गई है, इस तरह के आरोप विपक्ष लगातार लगा रहा है। आरोपों में मंत्रियों की मिलीभगत मुख्य रूप से शामिल होना बताई जा रही है।
कर्नाटक में सत्ता में काबिज हुई कांग्रेस के घेराव में बीजेपी के जमीन पर होने वाले विकास कार्यों में नीचे से ऊपर तक का कमीशन जिसके अधिकारियों के कमीशन का एक बड़ा हिस्सा मौजूदा सरकार के खाते में जमा हुआ, पार्टी फंड के नाम पर बीजेपी की सरकार के दौरान विकास के नाम पर कमीशन खोरी के अधिकतर मामले अधिकारियों से होकर हुए हैं , ऐसे आरोप कांग्रेस ने भरे मंच से लगाए हैं।
मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह ने आरोप लगाते हुए कहा था कि सिंधिया की बदौलत सरकार की वापसी हुई। सिंधिया को और ताकतवर होना है, जिसके लिए फंड जुटाने में सभी मंत्रियों को लगाया गया है। जानकार बताते हैं, कमलनाथ सरकार से बागी हुए विधायक/मंत्रियों और उंसके बाद के तख्ता पलट का प्रमुख कारण इसके बीच का हस्तक्षेप था। वहां कमलनाथ को सही कहा गया था क्योंकि सिंधिया खेमा को छूट देने से भ्रष्टाचार को और बढ़ावा देना माना जाता। कमलनाथ ने सिंधिया समर्थको के पॉवर को कम करना शुरू किया और वगावत होना शुरू हो गई। चूंकि कमलनाथ ने कमांड अपने हाथों में ले रखी थी। इस स्थिति में बगावत होना निश्चित थी। शिवराज सिंह किसी भी तरह सरकार की वापसी चाहते थे। उन्हें शशर्त सिंधिया की शर्तो को मानना पड़ा। इस बगावत के कारणों की सत्यता से मध्यप्रदेश में होने वाली टकराहट का अहसास शिवराज सिंह को अच्छे से था पर इसके अलावा उनके पास दूसरा कोई रास्ता भी नही था।
आरोपों में घिरी सरकार को मध्यप्रदेश में बड़े भ्रष्टाचार की जड़ दोनो तरफ से जुटाने वाले फंड की कवायत को माना गया है। सिंधिया समर्थक विधायकों का स्प्ष्ट किया गया था कि उनके मिलने वाले मंत्री पद के विभाग से कोई रोकटोक नही रहेगी। इन सब परिस्थितियों में शिवराज भी अपने को कमजोर नही होने देना चाहते हैं, लिहाजा उन्होंने भी अपने मंत्रियों को छूट दे दी, प्रदेश की राजनीति में इस तरह के आरोप प्रत्यारोप लगते रहे है।
बिगड़े समीकरण सुधारने के लिए विधानसभा उम्मीदवार की स्वच्छ छवि का ध्यान रखा जा रहा है। दूसरी तरफ जीत की गारंटी वाले चेहरे को तबज्जो दी जा रही है।
इसके साथ उन विधानसभा का भी सर्वे हो रहा है जहां विवादित विधायक/मंत्री का चेहरा सीट जिताने की दम रखता है।
सागर से मंत्री गोविंद सिंह के जातीय सम्मेलन हों या खुरई विधानसभा में विरोध के स्वर को विकास के नाम के आगे भुलाने की कोशिशें हों, शिवराज और सिंधिया ने अपने -अपने समर्थक विधायक से खुद की नींव मजबूत करने को लेकर खुद के प्रयास तेज करने की बात कही है। टिकिट वितरण में इस बार दोनो खेमों से सलाह तो ली जानी है पर हाई कमान आखिर निर्णय लेगा ये स्प्ष्ट किया गया है।
मंत्री गोपाल भार्गव, विधायक शैलेन्द्र जैन, प्रदीप लारिया महेश राय जैसे चेहरे जो खेमे से स्वंत्रत रहकर जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने में विश्वास रखने की बात करते हैं। ये शीर्ष नेतृत्व के भरोसे हैं। खेमा से दूर ऐसे उम्मीदवार टिकिट की दौड़ में विकास और निर्विवाद स्वच्छ चेहरे की दम पर खुद की जीत सुनिश्चित करने की गारंटी दे रहे हैं।
मध्यप्रदेश चुनाव को लेकर अमित शाह की पूरी कमांड है। मोदी प्रदेशों के आगामी विधानसभा के होने वाले चुनाव की समीक्षा स्वयं कर रहे हैं। आलाकमान नए सिरे से बगैर दबाव की राजनीति के कार्य कर रहा है।
मध्यप्रदेश की भविष्य की योजना समझने के लिए कर्नाटक चुनाव पर नजर डालनी होगी। कर्नाटक के बदलते बिगड़ते समीकरण में येदियुरप्पा का मुख्य किरदार था। यहां पार्टी ने उन्हें प्रथम पंक्ति पर रखकर रणनीति तय की थी।
कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार में येदियुरप्पा एमपी के अब के सिंधिया जैसे किरदार में थे। पार्टी फूट में भी येदियुरप्पा को जिम्मेदार ठहराया गया । बीजेपी मध्यप्रदेश में कर्नाटक जैसी गलती दोहराना नही चाहती है।
एक सर्वे के अनुसार जनता का धीरे- धीरे बीजेपी की सत्ता से मोह कम होने लगा है। बागी हुए विधायक को शामिल कर जनाधार को किनारे करते रहने से भारतीय जनता पार्टी की सत्ता की भूंख देखी जा रही है।
मध्यप्रदेश में पार्टी किसी भी दबाव में रहकर काम करे। उंसके हालात कर्नाटक जैसे हो जाएंगे, ये जानकारी मोदी की आईटी सेल ने भारतीय जनता पार्टी आलाकमान को दी है।
मध्यप्रदेश में बीजेपी के मुख्यमंत्री का चेहरा शिवराज सिंह ही रहेंगे। केंद्र में ज्योतिरादित्य को बड़े चेहरे के साथ ख़ुश करने की कोसिस की जा रही है। बीजेपी में मध्यस्थता की भूमिका रखने वाले समर्थित घटक ने शिवराज और सिंधिया नाम की दो धूरी के तालमेल से भ्रष्टाचार में लगाम लगने के संकेत दिए थे। कोशिशों के बाद समीकरण इस ओर जाते नही दिखे। उल्टे दोनो खेमो से आए दिन विवाद सामने आते रहे। लगाम के उलट बेलगाम जैसी स्थिति बनती चली गई। जब सामंजस्य की कोई संभावना नजर नही आई इसके बाद हाईकमान ने खुद के निर्णय को प्रथम पंक्ति में रखकर आगामी विधानसभा चुनावों की रणनीति तय की है।