खुरई विधानसभा का संग्राम मात्र औपचारिकता बना, विकास के आगे विपक्ष के आरोप हो रहे बौने साबित, एक तरफ से प्रत्याशी आश्वस्त दूसरे खेमे मे मायूसी छाई
सागर जिले की खुरई विधानसभा बुंदेलखंड क्षेत्र की सबसे खास सीट मानी जाती है। इस विधानसभा में लोगों का नजरिया देखने लायक रहता है। एक बड़ा और निर्णायक वोटर जो खुरई से विधायक को चुनकर ले जाता है वह यहां के विकास को सर्वोच्च मानकर वोट करने जाते हैं। इससे आगे बढेगें तो आपको बहुत सी भिन्नताएं देखने को मिल जाएंगी। लोगों के बीच सबसे ज्यादा सुनी जाने वाली बातों में कहते सुना जाता है कि “कुछ नही है सब अच्छा चल रहा है” कुछ लोगों को विकास हजम नही हो रहा है। एक और डॉयलॉग जो यहां के लोगों के बीच काफी प्रचलित है कि- हमारे मंत्री जी कहते हैं नेता मुझे बने रहने दो। बाकी जिसको बहुत बड़ा बनना है उसके विशेष प्रबंध की व्यवस्था तैयार रहती है। इन सबके बीच विपक्ष के महत्व को भी नकारा नही जा सकता है। इसकी भूमिका का सबको मान रखने की आवश्यकता होती है। खुरई विधानसभा में विपक्ष के कमजोर होने में पूर्व विधायक अरुणोदय चौबे के पद में रहते भय आतंक और जातिवाद को लेकर लोग चर्चा करते सुने जा सकते हैं। उनके द्वारा 2018 में आई कांग्रेस सरकार के दौरान उसके पुनरावृत्ति की चर्चा होती है। इन सबके बीच लोग मंत्री भूपेन्द्र सिंह के बचाव और आरोपों मे इसे खत्म करने और एक तबका उसे आगे ले जाने के आरोप लगाते देखे गए हैं।
खुरई विधानसभा के विकास की चर्चा मध्यप्रदेश भर में सुनी जा सकती है। क्षेत्र के लोगों ने जिसकी परिकल्पना भी न की थी वो सपने साकार होते देखे जा रहे हैं। चार नगर परिषद बनी। यहाँ 30 हजार से अधिक आवास स्वीकृत किए जा चुके हैं जो अपने आप मे एक रिकॉर्ड है। मालथौन तहसील में जल समस्या वर्षों पुरानी है। इस क्षेत्र के लोगों को 464 करोड़ की मालथौन ग्रामीण नल जल योजना एक सपना साकार होने जैसा है। खुरई में 515 करोड़ की लागत से ग्रामीण नल जल योजना पूरी होने जा रही है। हितग्राहियों को 490000 मुख्यमंत्री भूस्वामित्व अधिकार पत्र वितरित किए गए हैं। सीएम राइज स्कूल जैसी सौगात इस क्षेत्र को मिली हैं। बीना -उल्दन परियोजना से खुरई विधानसभा क्षेत्र की कृषि भूमि सौ फीसदी सिंचित होने की बात की जा रही है। बच्चों के लिए बस सेवा सरकार द्वारा निःशुल्क चलाई जाना है। ऐसी और अनेक योजनाओं से खुरई विधानसभा की तकदीर और तस्वीर बदलने में सहायता मिली है। इसके साथ मुख्यमंत्री द्वारा इंडस्ट्रियल कॉरिडोर , बरोदिया कला में लॉ कॉलेज, खुरई अस्पताल का 150 बिस्तरों वाले अस्पताल के उन्नयन बांदरी में आईटीआई कॉलेज खोलने, राजवांस में 132 केवीए विद्युत सबस्टेशन की स्थापना की घोषणाएं की जा चुकी हैं।
रक्षा राजपूत को कांग्रेस से मिले टिकिट की सच्चाई खुद अरुणोदय चौबे ने उनके सामने एक इंटरव्यू के दौरान कही थी। इसको समझें तो उनकी कानूनी दलील के चलते चुनाव न लड़ने का निर्णय को स्प्ष्ट समझ आता है। खुरई विधानसभा में रक्षा राजपूत से ज्यादा बुंदेला के नाम को लेकर चर्चा थी। सूत्र बताते हैं उन्होंने खुद चुनाव लड़ने से मना किया है। एक मीटिंग के दौरान कमलनाथ के समक्ष अरुणोदय चौबे ने बुंदेला का नाम आगे बढ़ाया था। चुकी बुंदेला खुरई विधानसभा में कांग्रेस के हालात पहले ही भांप चुके थे। जब कमलनाथ उनसे मैदान में उतरने के लिए कहते हैं। वो प्रत्याशी के समर्थन की बात रखकर चुनाव लड़ने में असमर्थता जाहिर कर देते हैं।
खुरई के राजनीतिक समीकरण समझने वालों का कहना है- आप किसी के बदले की भावना के उबाल को पूरी विधानसभा वासियों पर नही थोप सकते। रक्षा राजपूत का भूपेन्द्र सिंह को लेकर राजनीतिक विरोध जगजाहिर है। इसे पूरी विधानसभा पर किसी दुष्प्रभाव से नही जोड़ा जा सकता। ठीक ऐसा ही मामला अरुणोदय चौबे को लेकर है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री खुरई विधानसभा को विकास के मामले में पूरे प्रदेश में अव्वल मानते हैं। सीएम द्वारा दी गई जिमेदारी को भूपेन्द्र सिंह ने बखूबी निभाया है। दिल्ली आलाकमान भी मंत्री के मैनेजमेंट का लोहा मानती आई है।
भूपेन्द्र सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रही रक्षा राजपूत मालथौन का वार्ड पार्षद तक का चुनाव हार चुकी हैं। खुरई विधानसभा अंतर्गत आने वाले नगर निगम व परिषद के चुनाव में हुए निर्विरोध चुनाव को लेकर रक्षा राजपूत ने भूपेन्द्र सिंह पर कई आरोप लगाए थे। खुरई के विकास को वो मंत्री के अत्याचार के नाम पर भुलाने की कोसिस करती दिखाई देती हैं। जानकर कहते हैं कांग्रेस को इस विधानसभा से जिस चेहरे की तलाश थी शायद वो पूरी नही हो सकी है। प्रदेश में जिसका नाम मुख्यमंत्री के तौर पर लिया गया हो उस हिसाब से रक्षा का नाम और उसके परिणाम को लेकर या किसी प्रकार के कांटे की टक्कर मानकर इस चुनाव को नही देखा जा रहा है।