सागर जिले की रहली विधानसभा के विधायक पूर्व कद्दावर मंत्री गोपाल भार्गव अपने बयानों को लेकर चर्चा में बने रहते हैं। 2023 में भाजपा को मिली प्रचंड जीत में उन्हें मध्यप्रदेश मंत्री मंडल में जगह नही दी गई है। इसको लेकर वो पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से नाराजगी जताते देखे जा रहे हैं। विकसित भारत संकल्प यात्रा के दौरान भार्गव ने रहली में कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि नौ बार का विधायक मुख्यमंत्री के बराबर होता है। लोग मुझसे कहते हैं कि अब क्या होगा, आपका मंत्री पद चला गया तो मैंने उनसे कहा अगर मैं इतना कह दूंगा कि मैं गोपाल भार्गव बोल रहा हूं तो, मध्य प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी से लेकर कलेक्टर तक कोई भी मेरी बात से इनकार नहीं कर सकता, मेरे काम को मना नहीं कर सकता। ठीक इसी तरह कुछ दिन पहले मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने से नाराज गोपाल भार्गव ने खुद आगे आकर जवाब दिया और आगे की रणनीति बताई। अपने इस बयान में 9 बार के विधायक ने प्रदेश भर में समाज को संगठित करने का भी जिक्र किया, हालांकि, उन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट को एडिट कर दिया। भार्गव के विरोधी उन पर जातिवाद को लेकर आरोप लगाते रहते हैं। समाज को संगठित करना लिखकर उन्होंने खुद इसको जाहिर करने का काम किया है। इससे स्प्ष्ट हो गया कि वो जाती आधारित राजनीति पर ज्यादा विश्वास करके चलते हैं।
इस बार के चुनाव मे गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव के साथ उनकी पुत्र वधु शिल्पी भार्गव भी काफी सक्रिय नजर आईं। भार्गव एक ओर जहाँ जीत को लेकर आश्वस्त थे वहीं दूसरी ओर वो मुख्यमंत्री पद की लालसा लिए रहली विधानसभा से बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद एक मुख्यमंत्री को चुनकर ले जाने की बात कह रहे थे। शिवराज सरकार मे भार्गव के सम्मान का विशेष ध्यान रखा गया। बाबजूद वो सरकार में रहते कभी सन्तुष्ट नजर नही आए। भार्गव से जुड़े समर्थक ज्यादातर शिवराज सिंह का विरोध करते ही देखे गए हैं। इस विरोध को सीधे भार्गव से जुड़ा माना जाता रहा है।
हम इस पर और गौर करें तो मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को शिवराज का विरोधी माना जाता रहा है। गोपाल भार्गव से उनकी नजदीकी जग जाहिर है। विजयवर्गीय जब मध्यप्रदेश की राजनीति से अलग हुए उस समय भार्गव को गुटबाजी की भेंट में अलग-थलग करना माना गया। जबकि इस सबसे उलट शिवराज सिंह ने मंत्री मंडल में अच्छे विभागों के साथ उनके मान- सम्मान का विशेष ख्याल रखा। एक तरफ जहां विरोधी होने की बात कही गई वहीं दूसरे तरफ से ऐसा ज्यादा प्रतीत नजर नही आया। खेमेवाजी की लाइन को आगे बढ़ता जब देखा गया जब ठीक अपने पिता के नक्शेकदम अभिषेक भार्गव ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से नजदीकी बढ़ानी चाही। एमपी में सिंधिया के बढ़ते कद को लेकर यह सोचा समझा कदम था। मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में आमंत्रित कर सिंधिया का गढ़ाकोटा में किया गया ऐसा भव्य स्वागत किसी खास मेहमान के लिए रहली विधानसभा में शायद ही पहले देखा गया था। साथ ही गोपाल और गोविंद के साथ को लेकर विश्वास और मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के बेटे आकाश सिंह राजपूत और अभिषेक भार्गव की जुगलबंदी का अहसास दोनो तरफ से किया जाता रहा है। सदैव ऐसा ही प्रतीत हुआ जैसे भार्गव शिवराज सिंह को लेकर सुरक्षित महसूस नही करते हैं। अब आज जब वो विधायक हैं। सिंधिया समर्थक गोविंद सिंह मंत्री हैं और सारे ताने- बाने बौने के बाद उन्हें मोहन मंत्री मंडल में जगह नही दी गई है। ऐसे समय भार्गव के भाव जरूर बदले होंगे।
जरूरी नही कि आपका किसी व्यक्ति विशेष का विरोध आगे जाकर फायदा ही पहुंचाएगा। शिवराज सरकार के प्रति बीजेपी आलाकमान की नाराजगी की मुख्य वजह गुटबाजी के चलते पार्टी के प्रति रोष होना रहा है। इसी के चलते मंत्रियों का क्षेत्र में विरोध और लोगों का भारतीय जनता पार्टी के प्रति विश्वास कम होना रहा है। भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस पार्टी द्वारा 50 % कमीशन खोरी के आरोप और जमीन पर इसको लेकर जनता के विरोध को लेकर बीजेपी की केंद्र सरकार नजर बनाकर रख रही थी। इन्ही सब वज़हों के चलते शीर्ष नेतृत्व ने बदलाव करने का निर्णय लिया।
मध्यप्रदेश में गुटों में बटी भाजपा के आगे शिवराज असहाय दिखते थे। वो चाहकर भी कोई सख्त निर्णय नही ले पा रहे थे। खुद को मजबूत बनाए रखने के लिए वो अपनो को नाराज करना नही चाहते थे। वहीं उनके सामने अलग- अलग खेमो के चलते शाह को साधकर चलना उन हालातों में कठिन होता गया। अब जब वो न तो मुख्यमंत्री हैं न प्रदेश की राजनीति में उनका कोई दखल रह गया है ऐसे समय शिवराज खेमा से अलग गोपाल भार्गव सोचते होगें… काश! मध्यप्रदेश में शिवराज समर्थित भाजपा सरकार होती। जो उनके साथ हुआ है उससे हर लहजे में मामा का राज ही ठीक समझा जाएगा। जहाँ शिवराज के भरपूर विरोध के बाबजूद एक अच्छे खासे कद के साथ मंत्री मंडल में जगह के साथ भार्गव का मध्यप्रदेश की राजनीति में अच्छा खासा दखल देखा गया था।