6 फरवरी को सागर के बम्होरी बीका, खेजरा, बन्नाद और बाबूपुरा में छाए घने अंधियारे को सूर्य देव की रोशनी भी कम नही कर पा रही थी। कल हुए भीषण हादसे मे एक-एक कर उठ रही उन 31 अर्थियों के साथ चल रहे लोगों की आँखें नम थी। परिवार वालों के भविष्य की उम्मीद चार कंधों के सहारे अपना आखिरी सफर तय कर रहे थे। सबके सिर नीचे झुके हुए थे। जो उन परिवारों की असहनीय पीड़ा को महसूस करते जा रहे थे। रास्ता देखने ऊपर गर्दन करते तो वो असहाय पिता, भाई, चाचा सबके रो-रोकर रुंधे गलों से निकल रही चिखों को सुनकर अंतर्मन से एक ही आवाज निकलती कि हे ईश्वर! ये कैसा विधि का विधान है…
पहली कड़ी का शेष जानने के लिए आगे चलते हैं। जिन्होंने उसे नही पड़ा उनके लिए नीचे लिंक डाली गई है।
डंफर ट्रेक्टर क्रॉस करके आगे जाकर ट्रॉली में लगे कुंदे में फंस जाता है। बच्चे और पांडेय जोर-जोर से चिल्लाने लगते हैं। डंफर जैसे ही आगे बढ़ता है उससे ट्रॉली में जोर का धक्का लगता है। बच्चे चींखने-चिल्लाने लगते हैं। एक पल में सब कुछ उलट-पलट हो जाता है। पहले ट्रॉली और उसके पीछे ट्रेक्टर जाकर गहरे पानी और दल-दल भरे पुल में समाने लगता है। ट्रॉली पुल के किनारे से टकराकर औंधी होकर गिरती है। जो बच्चे ट्रॉली से जाकर बाहर गिरे वो गहरे पानी और दल -दलनुमा जगह मे गोते खाने लगते हैं। बच्चों के पापा.. मम्मी.. मम्मी..पापा.. भैया.. चाचा.. बचाओ.. बचाओ की आवाजें आने लगती हैं।
ट्रैक्टर चालक कोसिस भर बचाने में लग जाता है। जो बच्चे ट्रॉली के नीचे दबे थे उनकी रह-रहकर आवाजे आती रहती हैं। वो बाहर आने की नाकाम कोसिस करते हैं। कुछ बच्चे जो चोटिल थे। वो सहपाठियों को बचाने में लग जाते हैं। उस ठंड के मौसम में पानी मे बने रहने से उन सबके हाथ-पांव अकड़ने लगते हैं। लगभग 1 घण्टे के बाद वहाँ से भारतीय आर्मी का वाहन गुजरता है। जवानों ने जैसे ही आवाजें सुनी वो बचाव करने पानी मे छलांग लगा देते हैं। उनमें से एक बाहर निकाली लड़की उमा सेन से वो घटना की जानकारी लेते हैं। इतने में सड़क से आ रही रुकी जीप बम्होरी बीका की होती है। जब बच्ची उन्हें पहचान लेती है। जवान उसको गांव जाकर घटना की जानकारी देने को कहते हैं। उमा के पहुंचने के बाद मौके पर परिजन और गांव वालों का पहुंचना शुरू होता है। इसकी जानकारी खेजरा, बाबूपुरा और बंनाद के गांववालों को पहुँचाई जाती है। इन सबके पहुंचते जाने पर उस समय के जोर-जोर से चींखने-चिल्लाने और रोने की आवाजों और उस पीड़ा को लिखना यहां संभव नही है। एक पिता, एक भाई, एक चाचा और घर बैठी उन बच्चों की माँ जो अपने लाल के घर लौटने का इंतजार कर रही है। उन 54 में से 31 बच्चे अब इस दुनिया मे नही हैं।
मेरा संदीप नही दिख रहा है? मेरी मीरा कहां है ? क्या मेरी करुणा, मेरी साधना दिखी ? सब अपने बच्चों के नाम ले-लेकर पुकार रहे थे। खेजरा बाग के श्याम बिहारी दुबे, हरिगोबिन्द अग्निहोत्री, बम्होरी के देवेंद्र ठाकुर, मुरली सेन , लोकमन अहिरवार, नौने सेन, अर्जुन कोरी, विश्राम सौर सौर बाबूपुरा के अजय यादव, लक्ष्मण यादव, बन्नाद का अमर अहिरवार, गणेश अहिरवार और ऐसे पिता जो उस पुल में भरे गहरे पानी पानी में अपने बेटा/बेटी का नाम ले-लेकर उन्हें खोजने में लगे थे। जो बच्चा बाहर निकलकर जाता पूंछने लगते देखो क्या यह मेरा बेटा है? क्या यह मेरी बेटी है? पानी और दल-दल में जो गिरे थे वो सब बाहर निकाले जा चुके थे। अब बारी ट्रॉली में दबे बच्चों की थी। सब एक उम्मीद से उसके सीधा होने का इंतजार कर रहे होते हैं। ट्रॉली को ऊपर किए जाने के बाद सब खत्म हो जाता है। नीचे दबे 20-25 बच्चों में से कोई जिंदा नही निकलता है। इस सबको जिसने देखा और महसूस किया वो उसको याद करते आज भी गहरी पीड़ा से भर जाता है।
कुछ देर बाद पुलिस भी मौके पर पहुंच जाती है। इस हृदयविदारक घटना में 30-31 बच्चों ने मौके पर दम तोड़ दिया था। ट्रॉली में चार गांव बम्होरी बीका, खेजरा, बन्नाद और बाबूपुरा के स्कूली बच्चे थे।
घटना के दूसरे दिन इन चार गांवो से जब 31 मासूम बच्चों जिनकी उम्र महज 12 से 14 वर्ष के आसपास रहती है की अर्थियां निकलती हैं। उस घटना के महीनों गुजर जाने के बाद भी भुलाया नही जा सका था। इस हादसे में जिनके घरों के चिराग बुझे वो सब बच्चे औरों से बिल्कुल अलग थे। इसके लिए कहा भी जाता है। कुछ ऐसी जीवात्माएं होती हैं। जो कुछ दिन धरती पर वास करने ही आते हैं और लीला के बाद वो सदा के लिए दूर चले जाते हैं। उन सब बच्चों पर लिखना तो कठिन है। इन सबकी अच्छाई और खासियत जानने और महसूस करने के लिए उनके माँ-बाप परिवारवालों से मिलकर पूंछा जा सकता है। इस घटना को हुए 25 वर्ष होने जा रहा है। उस मनहूस पल को आज भी कोई याद करता है, वो गहरी पीड़ा से भर जाता है।
हादसे की जानकारी स्कूल मास्टर पटेल सर को लगने पर उन्हें मौके पर हार्ट-अटैक आ जाता है। इस घटना के बाद उस समय के स्टॉप का कोई भी टीचर बम्होरी बीका माध्यमिक स्कूल में दोबारा लौटकर नही गया। जिस-जिसने इसका जिम्मेदार समझा वो इससे उबरकर कभी बाहर नही आ सका। चिंतामन पटेल भी अब दुनिया मे नही हैं।
मामले की जांच से पता लगता है। जिस डंफर से टक्कर होकर ट्रैक्टर ट्रॉली नीचे गिरती है। वो समीप की एक क्रेसर, प्लांट का वाहन था। जिसका चालक क्रेसर में कोई जुर्म करके डंफर लेकर मौके से भागता है। उसे वहां के लोगों द्वारा पीछा करने का अंदेशा रहता है। जब ट्रैक्टर ट्रॉली बीच पुल तक आ जाती है। उस ड्राइवर को लगता है। शायद उसका पीछा करते वो पास आ गए हैं। इसी घबराहट के चलते वो डंफर आगे बढ़ा देता है जिसके बाद इतनी बड़ी घटना सामने आ जाती है।
इस घटना में केसली की बारातियों से भरी बस दुर्घटना से जुड़ा वह वाक्या जिसमें सिरोंजा के ग्रामीणों पर लूट के आरोप लगते हैं। जब ट्रैक्टर ट्रॉली पलटती है। चींखने-चिल्लाने की आवाज ग्रामीणों तक पहुंचती है। पर किसी बदनामी और पुलिस के सताए डर के चलते वो घटना स्थल पर नही जाते हैं। जब इस घटना में उन्हें बच्चों के मरने की जानकारी लगती है। साथ ही यह पता लगता है कि वह बच्चे पास गांव के थे। इसका उन सबको पछतावा होता है। उस समय के चश्मदीद से घटना को लेकर पूंछा जाता है तो वो कहते हैं, हमे पता नही था। इसमे बच्चे हैं। ये सब हमारे पास गांव के थे। ऐसा पता होता तो हम सब और बदनामी सहन कर लेते। पुलिस से मार शह लेते, पर जाकर उन सबको बचाने की कोसिस जरूर करते। शायद हम सबके प्रयास से ट्रॉली सीधी हो जाती और इतनी बड़ी घटना होने से बच सकती थी।
इस पुल पर हुई घटनाओं को लेकर प्रशासन की लापरवाही स्प्ष्ट रूप से देखी गई। बगैर सुरक्षा के पुल का होना इन घटनाओं की मुख्य बजह रही है। साथ ही इस पुल से होकर एक मोटी पाइपलाइन गुजरी थी। बारातियों की बस उसी टूटे पाईप के पानी की बौछार से अनियंत्रित हुई थी। मिलेट्री वाहन भैंसों को बचाते समय नीचे गिरता है। तीसरी घटना ट्रेक्टर ट्रॉली की हुई। तीनो घटनाओं में पुल पर सुरक्षा मानकों का न होना मुख्य बजह रहती है।
इन सबके साथ वह अनदेखा पहलू जिसका आज के वैज्ञानिक युग मे सोचना सही नही माना जाएगा। हर घटना का एक कारण तो होता ही है। पर सोचने वाली बात है। मिलेट्री वाहन गुजरते समय अचानक से भैसों का झुंड कैसे आ जाता है। बस के ड्राइवर को इतनी बड़ी पानी की बौछार क्यों नही दिखती है। तीसरी घटना जिसमे ट्रैक्टर-ट्रॉली आधा पुल क्रॉस कर लेता है। दूसरी तरफ आते डंफर का रूक जाना और डर के चलते ड्राइवर का इतना बड़ा कदम उठा लेना। इसके साथ केसली के बरातियों की बस में सिरोंजा के लोगों पर आरोप लगना। जिसके चलते उनका दुर्घटना की जानकारी होने के बाद मौके पर न पहुंचना। इस सबको साधारण तो नही कहा जा सकता है। इन घटनाओं के सालों बाद आज भी उस पुल के पास रह रहे लोगों को देर रात पुल से आवाजों का सुनाई देना। गुजरते राहगीरों के साथ अजीबोगरीब वाकये का होना इस जगह को लेकर संदेह पैदा करते रहते हैं। अब इस पुल को सदा के लिए बंद किया जा चुका है। उसके बाबजूद यहां के आसपास घटनाओं का सिलसिला रुकने का नाम नही ले रही हैं।
जिन्होंने पहली कड़ी नही पड़ी है उनके लिए उसकी लिंक नीचे डाल रहा हूँ। 👇
तीन भीषण हादसों की तफ्तीश से हुआ 58 मौतों का खुलासा, सागर से लगे सिरोंजा के इस पुल को हमेशा के लिए क्यों करना पड़ा बंद, आसपास के लोगों को सालों से यहां किसके चींखने-चिल्लाने की आती हैं आवाजें ?