मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को मिली प्रचंड जीत के प्रमुख चेहरों को किनारे करके पीछे की कतार को आगे ले जाकर के दुष्परिणाम मंत्रीमंडल विस्तार के बाद दिखाई देना शुरू हो गए । इन बदलावों को लेकर भारतीय जनता पार्टी की अनुभव और ग़ैरनुभव की चूक इस एक वर्ष के दौरान कई बार निकलकर सामने आ चुकी है।
राजनीति में खेमेबाजी न हो यह संभव नही । बात मध्यप्रदेश की करें तो शिवराज सिंह के मुखिया रहते इसका असर कभी खुलकर सामने नही आने पाया। अब जो हालात बने हैं वो स्प्ष्ट तौर पर प्रदेश में बीजेपी को कमजोर करने का काम कर रहे हैं। शिवराज सरकार में खेमेबाजी देखने को मिली पर उसका प्रभाव इतना नही हो पाया जिससे पार्टी को उसका नुकसान उठाना पड़ा हो। 2023 मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली प्रचंड जीत से सबके सामने यह सिद्ध हो चुका है।
बुंदेलखंड में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है। इसमें लड़की पक्ष्य की शर्त में दूल्हे के साथ बुजुर्गों को आने की मनाही रहती है। जिसके उद्देश्य मे शादी रश्म के दौरान कठिन प्रश्नों को पूँछकर दूल्हा पक्ष्य को निरुत्तर करना होता है। इसके तोड़ के लिए वो होशियारी करके बारात में एक बुजुर्ग को साथ ले जाते हैं। जब वधु पक्ष्य सवाल करना शुरू करता है। बाराती गुप-चुप उस बुजुर्ग से सवालों के जबाब पूंछने लगते हैं। सही जबाब मिलने पर वधु पक्ष्य बगैर तजुर्बेकार के इनका जबाब देना कठिन है समझ जाता है। खोज करने पर बारात में बुजुर्ग के साथ आने की सच्चाई सामने आ जाती है। मोहन सरकार चलाने में दिख रही कमियों मे अनुभव की कमी बताने के लिए यह कहावत सटीक बैठ रही है। कहते हैं सही ज्ञान वहीं है जो जमीन से सीखकर मिला हो। किताबी ज्ञान का इससे कोई मुकाबला नही हो सकता। मध्यप्रदेश में नये को आगे लाकर सरकार चलाने के फार्मूले में हो रही निरंतर ख़ामियों में अनुभव और कुशल राजनेता को दरकिनार कर लिए निर्णय को उसका परिणाम माना जा रहा है।
बात सागर जिले की राजनीति की करें तो आपको पूर्व मंत्री वर्तमान रहली विधायक पंडित गोपाल भार्गव और पूर्व गृहमंत्री वर्तमान खुरई विधायक भूपेंद्र सिंह की कमी दिख रही है। पार्टी के अंदर पनपी खेमेबाजी और प्रशासनिक लचरता से स्प्ष्ट है कि मोहन सरकार शिव के राज के करीब तक से होकर भी नही चल पा रही है। पार्टी के सीनियर विधायक की यह नाराजगी एक प्रकार से बीजेपी की भलाई होना माना जा सकता है। इन्होंने भारतीय जनता पार्टी में 1985 से सक्रिय राजनीति, उस दौरान के संघर्ष और अवसरवादी राजनीति से दूर रहकर आखिरी समय तक पार्टी से जुड़े रहने का कई बार संकल्प दोहराया है। आज जो हालात हैं उस पर चिंता जताना जिसमे मध्यप्रदेश में मंत्रीमंडल विस्तार को लेकर एक- एक नाम दिल्ली से फ़ाइनल हुआ मानकर चलें तो बेशक यह निर्णय गलत साबित हुआ है।
आलाकमान को लीडरशिप में उन विशेष के बारे में अच्छी जानकारी होनी चाहिए जिनमे सबको साथ लेकर चलने की क्षमता दिखाई देती है। जहाँ वो दूसरों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा करना खुद का कर्तव्य मानकर वैसे निर्णय लेते हैं। राजनीति सिद्धान्त के अन्तर्गत इसमें भिन्न- भिन्न पक्षों का अध्ययन किया जाता हैं। शिवराज और उनके मंत्रिमंडल में विभेदों को दूर करने के तरीके होते थे। वो क्रांति की भी वकालत करना जानते थे। राजनीतिक सिद्धांत में, स्वतंत्रता, समानता, न्याय, लोकतंत्र, और धर्मनिरपेक्षता जैसी अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट किया जाता है। साथ ही राजनीतिक सिद्धांत, विचारों और सार्वजनिक जीवन से जुड़ी अवधारणाओं का विश्लेषण किया जाता है।
खुद को ताकतवर बनाने के लिए गुटबाजी एक विकल्प हो सकता है। मोहन मंत्रीमंडल में अनुभव की कमी को साफ तौर पर महसूस किया जा सकता है। मुखिया के ताकतवर बनने में जो कमियां पनपी हैं वो विपक्षियों को मजबूत बनाने में सहायक सिद्ध हो रही हैं। भारतीय जनता पार्टी आलाकमान मध्यप्रदेश और राजस्थान में किए इन प्रयोग के दुष्प्रभाव का बारीकी से अध्ययन कर रही है। जो सीनियर और अनुभवी को अभी कमजोर समझकर चल रहे हैं आने वाले कुछ समय बाद उनके सामने आलाकमान द्वारा चौकाने वाला निर्णय देखने को मिल सकता है।