पत्रकारों को लगातार क्यों घेरा जा रहा है? इसका जवाब खुद पत्रकारिता की वर्तमान स्थिति में छिपा है।
हाल ही में एक और मामला सामने आया है। वीडियो में दिख रहा व्यक्ति पुष्पेन्द्र सक्सेना, जो टीकमगढ़ का निवासी है, खुद को पत्रकार कल्याण परिषद का राष्ट्रीय अध्यक्ष बताता है। पुलिस ने वाहन चेकिंग के दौरान उसकी लाल कार से 40 पेटी अवैध शराब ज़ब्त की है। इस व्यक्ति पर पहले से भी कई आपराधिक मामले दर्ज हैं।
अब सवाल उठता है, ऐसे लोगों को “पत्रकार” कहलाने की छूट क्यों दी जाती है?
थोड़ा-सा सर्च करें, तो ऐसे दर्जनों नहीं, सैकड़ों मामले मिल जाएंगे, जहाँ पत्रकारिता की आड़ में गैरकानूनी गतिविधियाँ चल रही हैं।
दुर्भाग्य यह है कि इस सबके बावजूद अधिकांश पत्रकार चुप रहते हैं।
एक वर्ग यह सोचता है कि “मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता” जबकि दूसरा वर्ग, जो ऐसे ही कामों के लिए मीडिया में आया है, जो संगठन और एकता के नाम पर शासन-प्रशासन पर अनैतिक दबाव बनाता है।
नतीजा यह होता है कि असली पत्रकारों की मेहनत पर दाग लगता है।
जब कोई ईमानदार पत्रकार किसी भ्रष्ट अधिकारी या नेता के खिलाफ खबर चलाता है, तो सामने वाला इन्हीं फर्जी पत्रकारों के उदाहरण देकर उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठा देता है।
यह स्थिति पत्रकारिता के लिए सबसे खतरनाक दौर है।
जनता का भरोसा टूट रहा है, और जिम्मेदार वर्ग बेलगाम होता जा रहा है। वक्त का तकाजा है कि सच्चे पत्रकार आगे आएँ और इस कमज़ोर कड़ी को खुद सुधारें।
वरना आने वाले समय में “पत्रकार” शब्द सम्मान नहीं, संदेह का पर्याय बन जाएगा।











