सुधीर यादव द्वारा छोड़ा गया जातिविशेष अस्त्र हुआ फेल, बीजेपी ने इसे सिरे से नकारा, हाईकमान की समझाईस को दरकिनार करना पड़ा भारी, हारे के सहारे को कांग्रेस से आखिरी उम्मीद
सुधीर यादव ने भारतीय जनता पार्टी से हमेशा के लिए दूरी बना ली है। सोशल मीडिया के जरिए उन्होंने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। बेटे सुधीर की खातिर लक्ष्मी नारायण दादा भी मैदान में उतर आए। ऐसा लगा जैसे इस मामले में उन्हें जबरजस्ती लाया गया है। एक पिता की बेटे के प्रति हमेशा आत्मा जुड़ी रहती है। बेटा खूब आगे बड़े यह हर पिता चाहता है। और वह जब विपरीत चलने लगता है तब एक पिता को सबसे बड़ा आघात पहुंचता है। बंडा विधानसभा सभा से सुधीर यादव को टिकिट न देने के भारतीय जनता पार्टी के सामने कई कारण माने जा रहे हैं। दादा लक्ष्मीनारायण के लिए सागर जिलावासी एक अलग सम्मान देकर चलते आए हैं। 82 बर्ष की उम्र में दादा का रौब देखते ही बनता है। वहीं हम बात सुधीर यादव को लेकर करें तो पिता के जैसे राजनीतिक बुद्धिमत्ता और सूझबूझ से वो कोसो दूर हैं।
जब बीजेपी ने 2018 के सुरखी विधानसभा सीट से सुधीर यादव को मैदान में उतारा तब क्षेत्र के लोगों द्वारा इनको लेकर खासी नाराजगी देखने को मिली थी। सुधीर के व्यवहार और मैनेजमेंट से परेशान होकर विधानसभा से जुड़े बरिष्ठ भाजपाइयों ने चुनाव परिणाम के पहले पार्टी से दूरी बनानी शुरू कर दी थी। लोग कहते हैं उस समय सुधीर का बर्ताव चुनाव से पहले विधायक बनने जैसा हो गया था। सुधीर को लगने लगा था कि मैं आसानी से चुनाव जीत रहा हूँ। इस सबको लेकर इनकी शिकायतें ऊपर तक जाने लगी थी। चुनाव के बिगड़े समीकरणों को लेकर सुधीर यादव को हाई कमान ने चेताया भी। हालात इस कदर बिगड़े कि चुनाव से पहले क्षेत्रवासियों ने गोविंद राजपूत को अपना विधायक मान लिया। यह गोविंद सिंह के लिए एक तरह का वाक ओबर था। इन सबके बाबजूद सुधीर यादव कुछ भी मानने को तैयार नही थे। आखिरकार उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ता है।
गोविंद सिंह कांग्रेस से चुनाव जीतकर विधायक से मंत्री बने। इसी बीच सुधीर यादव को SC/ ST के एक मामले में जेल जाना पड़ता है। सन 2019/20 में सिंधिया गुट की दम पर मध्यप्रदेश में बीजेपी की वापसी होती है। उपचुनाव से पहले सुधीर यादव और गोविंद सिंह के बीच भूपेन्द्र सिंह के द्वारा मध्यस्थता कर सुलह करवा ली जाती है। सुधीर यादव इस चुनाव में गोविंद सिंह का पूरी ताकत से सहयोग करते हैं। मंत्री बनकर वापस लौटे गोविंद सिंह सुरखी विधानसभा के सभी कार्यक्रमों में सुधीर यादव के साथ देखे जाने लगते हैं। तभी अचानक से इनके अनबन की खबरें आने लगती हैं। इस मामले से जुड़े लोग बताते हैं कि सुधीर यादव एक जाति के मिले सहयोग को मंत्री सिंह के सामने खुद की उपलब्धि के तौर पर गिनाते रहते थे। इस तरह के अनावश्यक दबाब के चलते दोनों तरफ से तकरार होने लगती हैं। लोगों का अंदेशा सच साबित होता है और दोनो तरफ से दोस्ती में दरार आ जाती है।
सूत्र बताते हैं सुधीर यादव गोविंद सिंह की बेरुखी को लेकर उनके साथ किया धोका बताकर गलत तरह से प्रचारित करने लगते हैं। इसी बीच तल्खी और बड़ जाती है। मंत्री खेमा ने गलत प्रचार को लेकर सुधीर को चेताया। अधिक होने पर दोनों तरफ से वाद -विवाद जैसी स्थिति बनने लगती है। इसके बाद कुछ दिन के लिए सुधीर अज्ञातवास का सहारा ले लेते हैं।
इस सबसे बाहर निकलकर सुधीर यादव बंडा विधानसभा में अपनी सक्रियता बढ़ाने लगते हैं। पिछली गलतियों से सबक न लेकर सुधीर उसी परिपाटी की राजनीति बंडा विधानसभा में करने लगते हैं। वो एक जाति को केंद्रित कर उनके रहनुमा के तौर पर बीजेपी हाईकमान के सामने टिकिट का बिगुल फूंक देते हैं। वो इसको लेकर बंडा विधानसभा क्षेत्र में सक्रियता बढ़ाने लगते हैं। पार्टी की हुई बैठकों में सुधीर के तेवर को लेकर सभी हैरान रह जाते थे। जब इनको लेकर पार्टी सर्वे कराती है तो ठीक सुरखी जैसे हालात बंडा विधानसभा से मिले रुझानों से सामने आने लगते हैं। सुधीर यादव को पार्टी द्वारा समझाईस दी जाती है जिसका उल्टा प्रभाव होता है। सुधीर को टिकिट न मिलने पर क्षेत्र की जनता के सामने बगावत का एलान करने जैसी बातें ऊपर हाई कमान तक जाने लगतीं हैं। मिली रिपोर्ट के अनुसार बंडा विधानसभा से सुधीर यादव योग्य प्रत्याशी साबित नही हो पा रहे थे। पार्टी को लेकर कुछ गलत माहौल बनता उससे पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपने उम्मीदवार के तौर पर वीरेन्द्र सिंह लोधी के नाम की घोषणा कर देती है। पार्टी सुरखी जैसी गलती बंडा में दोहराना नही चाहती थी। बंडा विधानसभा के तरबर सिंह लोधी पर भी इसी तरह के आरोप लग रहे हैं। बीजेपी ने अपने उम्मीदवार को इसको लेकर खास हिदायत दी है।
वर्तमान दौर में जातिवादी सोच हर समाज के वर्गो के लिए घातक होती जा रही है। नेताओं को जाती के सहारे घर बैठे एक बड़ा समर्थन हासिल हो जाता है। सत्ता और पद में रहकर और इस सबसे बिमुख भी हो जाएं तब भी नेताओं को इसकी ताकत मिलती रहती है। कुछ नेता इसे शस्त्र के रूप में इस्तेमाल करते रहते हैं। सुधीर यादव की राजनीति में जातिवादी सोच सिर चढ़कर बोल रही है। जाती के नाम पर ये खुले मंच से विरोधियों और पार्टी को ललकारते हुए देखे गए हैं। समाज से जुड़े कुछ लोग इसे अपनी जाति पर आघात होना बता रहे हैं। सुधीर अगर इसमे कामयाब होते हैं तो निश्चित ही उनका दबाब बड़ जाएगा। सूत्र बताते हैं सुधीर ने कांग्रेस पार्टी से सम्पर्क साधा है। मध्यप्रदेश की कमान संभाल रहे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास इनका फीडबैक पहले से ही है। उन्होंने सुधीर के सामने कुछ शर्तें रखीं हैं।
अभी तक जितने भी नेताओ ने जाती का सहारा लिया उसका कुछ न कुछ लाभ जरूर हुआ है। इसके साथ चंद लोग जिसकी जरूरत नेताओं को रहती है वो भी इसका लाभ उठा लेते हैं। जिसको सही जरूरत होती है वो मदद से वंचित रहते आए हैं। एक जरूरतमंद के लिए इसका कोई सहारा नही मिलता। हाँ ये बात जरूर है जब भी जाति के नाम पर एकता होती है नेताओ को उसमे अपनी राजनीति को चमकाने का एक सुनहरा मौका मिल जाता है। जब मामला शांत होता है तब सामने वाले के घर कोई पूंछने वाला नही होता। उल्टा वो दूसरे लोगों की नफरत की बजह बन जाते हैं। कोई खुलकर कोई चोरी छुपे इसका इस्तेमाल करता है। आमजनमानस को अपने नेता का जातिवादी होना खटकता है। संगठन भी जातिवादी सोच के व्यक्ति को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने से कुचक्ति है।
जाती का सहारा लेकर बेशक आप कुछ जगहों पर आगे बढ़ सकते हैं। पर समानता रखने के लिए यह अच्छे माहौल में विष घोलने का काम करता है। जिसके आगे चलकर बेहद बुरे परिणाम निकलकर आते हैं। यह वह दाग बनकर उभरता है जिसे आगे चलकर चाहकर भी खुद से अलग करना असंभव हो जाता है।