संदीप सबलोक एक और काम अनेक पर की समीक्षा के भाग 1 का अंश जरूर पढ़िए
सागर के डॉ. संदीप सबलोक बड़ा नाम कमा रहे हैं। उनके नामी उन्हें की कई वजहें हैं। वो कभी कांग्रेस प्रवक्ता कभी मास्टर साहेब, होटल संचालक तो कभी पत्रकार की भूमिका में नजर आ जाते हैं। एक चेहरे के उनके कई रूप देखकर लगता है वो अनुपम खैर के द्वारा फ़िल्म वक्त हमारा है की निभाई भूमिका से प्रभावित हैं। सबलोक की खुद की पार्टी से जुड़े पदाधिकारियों से ज्यादा नाराजगी सुनाई देती है। और रहे भी क्यों न। वो कहते हैं जब मैं एक होकर अनेक काम कर लेता हूँ। फिर पार्टी में मिलावटी परिश्रम से गुस्सा आना लाजिमी है। शायद इनके हिसाब का सिस्टम सेट नही हो पा रहा है। चाहे नाथ हों या राजा साहेब। वो तवज्जो नही मिली जितनी इन्हें चाह रहती है। कांग्रेस से जुड़े खबरी लाल बताते हैं सबलोक जी को दिक्क्क्त बहुत रहती है। कोई तो इतना तक कह देते हैं कि इन्हें दूसरों के नाम और प्रसिद्धि रास नही आती है। इनकी नाराजगी बिन बुलाए होती है जिसका कोई कारण और सम्मान नही रहता है। अकारण बैठकों से दूर होकर चले जाना किसी बात की ईर्ष्या को दर्शाता है। विषय की गम्भीरता से परे बात-बात पर नाक सिकोड़कर खड़े हो जाना व्यक्ति की विश्वसनीयता को कम कर देता है। पार्टी बैठकों और चुनावी तैयारियों में इनकी मौजूदगी सीमित रहती है। कारण जो भी हों जबकि पार्टी लेवल पर इनका कद प्रदेश स्तर का बताया जाता है। सूत्र बताते हैं इनका जिले के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से सही सामंजस्य नही बैठ पा रहा है। सबलोक जी से मेरी इस विषय मे दूरभाष के जरिए बात हुई। मैं उनसे मिलने की सोच रहा था पर लगा कि क्या पता वो किस रूप में होकर किस विभाग में समय दे रहे होंगे। यह सब सोचकर मैंने फोन लगाना उचित समझा। मैंने पूंछना शुरू किया तो बोले मेरी चुनौतियों के बारे में जिक्र करना नही भूल जाना। मैंने बोला कौन सी वाली का जिक्र करना है। उनकी बातों से स्प्ष्ट हुआ कि उन्हें Guest Faculty Teacher से जुड़ी जॉब में काफी रूचि है। राजनीति और जॉब में यह महाविद्यालय स्थापना के अंतर्गत और लोकसेवा के अंतर्गत नही आती है। मुझे उनसे बातों के बीच मे “जितना तसला उठाएंगे यानी पढ़ाई कराएंगे उतना पैसा मिलता है” जैसी बात का कहना बुरा लगा। बात रखने के इस मिश्रण से लगा कि क्या इनकी पांचवी कोई भूमिका हो सकती है ? सबलोक का मानदेय वाला कार्य है। वेतन वाला नही है। उनका कहना है कांग्रेस में होकर बीजेपी की सत्ता के रहते वो पूरी ताकत से अपनी पार्टी का काम करते रहे हैं। चुनौतियां और दबाव को झेलते रहे। उनके खिलाफ एडमेनेशट्रेशन (Administration) को तमाम तरह की शिकायतें होती है, राजनैतिक दबाव आते हैं। पर परफॉर्मेंस (performance) एक अच्छे शिक्षक के कारण मेरे लिए समझौता करके चला जाता हैं। सबलोक की बीच- बीच में जो पत्रकारिता की झलक आती है वो मानसेवी है जिसमे कोई वेतन, भत्ता, भुगतान नही मिलता है। इनके अभी तक के राजनीतिक कैरियर को देखें तो न ही कांग्रेस पार्टी ने इन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी से नवाजा है। यहां सवाल उठता लाजिमी है ये इतने सारे कार्य और बगैर उपलब्धि के हस्तक्षेप करके क्यों रखते हैं। इसके पीछे आखिर मकसद क्या हो सकता है ? कोई बगैर लाभ के इतना समय क्यों जाया कर रहा है। इसके पीछे छुपे कारणों में सबकी अपनी-अपनी राय है। एक तो राजनैतिक पृष्ठभूमि का बताकर सत्ता पक्ष पर दबाव बना रहता है। व्यवसायिक दृष्टि से होटल और उससे जुड़ी लाभ और हानि में तालमेल बैठाया जाकर चला जा सकता हैं। एक शिक्षक के तौर पर मानदेय के आधार पर तालमेल रख सकते होने में मदद मिलती होगी। पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ा कहकर पार्टी में प्रमुखता बढ़ाए जाने में मदद मिलती होगी। कांग्रेस पार्टी से प्रवक्ता बनना यानी विषयों पर बयान और डिबेट से सीधा हस्तक्षेप बने रहना उनके प्रयासों में शामिल रहता होगा। जब इनकी सक्रियता की ओर नजर दौड़ाएं तो हर किसी के मन मे प्रमाणिकता के साथ जहन में यह सब बातें सामने आती हैं। इस विषय को उठाने का मकसद संदीप सबलोक को समझना मात्र है। इसमे किसी राग द्वेष को कोई जगह नही दी गई है।