सागर जनपद के बम्होरी बीका पटवारी हल्का नम्बर 61 जमीन का विवाद थमने का नाम नही ले रहा है। एक और मामले में बिल्डर प्रमेन्द्र रिछारिया और उसके कर्मचारियों द्वारा 50-60 घरों से ज्यादा हरिजन बस्ती परिवार के घरों की जलापूर्ति कर रहे कुआं के पानी पर रोक लगाई गई है। प्राप्त जानकारी अनुसार इस कुएँ का निर्माण कार्य महेंद्र अहिरवार के पिता स्व. लक्ष्मण अहिवार की पहल पर सन् 1987 में बस्ती वालों के श्रमदान और आर्थिक मदद लेकर कराया गया था। तब से लेकर अब तक पिछले 37-38 वर्षों से बम्होरी बीका के इन हरिजन आदिवासी मोहल्ले के पीने के पानी और अन्य जरूरतों के उपयोग इस कुआं के पानी से होता आ रहा है।
सुगमता से घर -घर पानी पहुंच सके इसके लिए बस्ती के लोगों द्वारा पैसा इक्ट्ठा कर कुआं में मोटरपंप लगाया हुआ है। सुष्मिता प्रमेन्द्र रिछारिया द्वारा इसके पास की जमीन खरीदने के बाद को लेकर विवाद होना शुरू हो जाता है। रिछारिया द्वारा खरीदी जमीन की नपाई में यह कुआं उनके हिस्से में होना बताया जाता है।
सन 2014 में महेंद्र अहिरवार आर्थिक मजबूरी के चलते इससे लगी भूमि को मुकेश जैन ढाना को बेच कर देता है। मुकेश जैन ढाना को जमीन विक्रय से पहले महेंद्र अहिरवार ने इस कुआं और समीप की 5 डिसमिल भूमि जिसमे उसके पिता और पूर्वज के चबूतरे और अत्येष्टि स्थल बना हुआ है उसे बचाने की बात कहता है। मुकेश जैन मालिकाना हक के तहत 100 रुपये के इकरार नामा पर गवाहों की मौजूदगी में महेंद्र अहिरवार और बस्तियों के लोगों को इस कुएं के आजीवन उपयोग, ट्यूबेल बोर सुविधा देने और उससे लगी 5 डेसिमल जमीन देने का लिखित में उल्लेखित करता है।
जब सुष्मिता प्रमेन्द्र रिछारिया ने यह जमीन खरीदी उन्होंने इस जमीन की रजिस्ट्री खुद के नाम पर होने की बात कही। महेंद्र अहिरवार मुकेश जैन द्वारा लिखे इकरार नामा को प्रमेन्द्र रिछारिया को दिखाता है। जिसे रिछारिया द्वारा नकार दिया जाता है। मामले ने और तूल तब पकड़ा जब प्रमेन्द्र रिछारिया द्वारा बस्ती के लोगों को कुए के पानी के उपयोग पर रोक लगा दी जाती है। ग्रामीणों के बताए अनुसार उन्होंने इसमे डले मोटरपंप और पाइप लाइन को छतिग्रस्त और तोडफ़ोड़ कर दी।
इस बीच बम्होरी बीका सरपंच, जनपद सदस्य और ग्रामीणों ने रिछारिया द्वारा पंचायत की भूमि को जबरन कब्जाने के चलते जिला प्रशासन को लिखित आवेदन देकर मामले की शिकायत कर दी। जब राजस्व अमला ने जाकर इसकी नपाई की तो वहां से 2.5 एकड़ से ज्यादा मुक्त हुई भूमि में यह कुआ पंचायत की भूमि में शामिल होना पाया गया।
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सब जानकारी होने के बाबजूद प्रमेन्द्र रिछारिया जबरन खरीदी गई भूमि के बाउंड्री निर्माण और अन्य कार्यों के लिए कुएं में मोटरपंप लगाकर उपयोग करता रहता है। हरिजन आदिवासी बस्ती के लोगों ने जब इसका विरोध करना शुरू किया। ग्रामीणों ने बोला कि यह हम सबकी मेहनत से बनाया हुआ कुआं है। जो पंचायत की भूमि में होना पाया गया है। इसका उपयोग बस्तियों को लोगों को करने दीजिए। आपके पानी लेने से हमारे घरों में पानी का संकट आ गया है।
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इस सबसे गुस्साए रिछारिया के कर्मचारियों ने मोटरपंप और लाइन को छतिग्रस्त करना शुरू कर दिया। जब हरिजन बस्तियों के लोगों ने इसका विरोध किया तो उन्हें जातिसूचक गालियां और जान से मारने की धमकी दी जाने लगती है। जब सब उम्मीद टूट जाती है। पानी की किल्लत के चलते बस्ती के लोगों को दूर -दूर से जाकर पानी भरने को मजबूर होना पड़ता है। इन सबसे तंग होकर बस्ती के लोग सुष्मिता रिछारिया, प्रमेन्द्र रिछारिया, शैलू रिछारिया, मुकेश जैन ढाना, आंनद रिछारिया, आदि कर्मचारियों से प्रताड़ित होकर उन सबके विरुद्ध मामले को लेकर जिसमे आवेदकों में अहिरवार खेमचंद, बबीता , बाबू , सूरज , जानकी , मेनका, नेहा, रतन, मनीषा, चन्दा, प्रीति, भारती, रेखा, टीकाराम, अनिल कुमार, निर्मला, प्रेमरानी, विनीता, पुष्पा, किरन, जगरानी, रगवीर, कमलेश, हरिशंकर, रामवीर, उषा, रेवती, ब्रजरानी, रीता, सीलन, पार्वती, आशीष, अशोक , रामलाल, रवि , दीनदयाल, दीना, संगीता, भागीरथ गौंड, शंकर गौंड, शिवराज आदि ने मिलकर सागर कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन देकर दोषियों पर कार्रवाई और कुआं को मुक्त कराने की मांग की है।