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मध्यप्रदेश के सागर जनपद से ऐसा पहला मामला जहां हकदार किसान को आज-तक नही मिला किसी भी सरकारी योजना का लाभ, प्रशासनिक चूक के चलते अति दयनीय हालात में एक किसान परिवार

This farmer family has not received the benefit of any government scheme since independent India

Shailendra Rajput by Shailendra Rajput
November 8, 2024
in Follow Me Special, ताजा खबर, भारत, सागर
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मध्यप्रदेश के सागर जनपद से ऐसा पहला मामला जहां हकदार किसान को आज-तक नही मिला किसी भी सरकारी योजना का लाभ, प्रशासनिक चूक के चलते अति दयनीय हालात में एक किसान परिवार
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आज हम जिस परिवार के बारे में बताने जा रहे हैं आप मे से शायद ही किसी ने आज-तक ऐसा मामला देखा और सुना होगा। जिसके पास घर, जमीन, जायजाद जीवनयापन करने का कोई जरिया नही होता है उसे अतिगरीबी रेखा के नीचे माना जाता है। पर यहां जिस परिवार के बारे में बताने जा रहे हैं उसके पास 7-8 एकड़ उपजाऊ जमीन तो है पर उसको करने के लिए कोई संसाधन मौजूद नही है। सागर जनपद अंतर्गत आने वाले बम्होरी बीका में सड़क से लगा जर्जर मकान एक किसान परिवार की माली हालत खुद बयां कर रहा है। यहां प्रशासन की गैरजिम्मेदाराना कार्यप्रणाली से एक भरा पूरा परिवार अतिगरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने को मजबूर है। आजाद भारत से अब तक केंद्र और प्रदेश सरकार की एक भी योजना का इस परिवार को कोई लाभ नही मिल पाया है। सरकारी तंत्र की इससे बड़ी चूक इससे पहले शायद ही किसी ने देखी और सुनी होगी।

पहले गांवो में जागीरदारी प्रथा होती थी ये भूमि की रैयतदारी प्रणाली थी, जिसमें किसी भूमि से लगान प्राप्त करने और उसके प्रशासन की ज़िम्मेदारी, शासक के द्वारा स्थानीय सशक्त व्यक्ति को अधिकारी बना कर दी जाती थी। आज मैं जिस परिवार बारे में बताने जा रहा हूँ उन रामसिंह ठाकुर का नाम जागीरदार परिवार से आता था। इनके परिवार के गोविंद सिंह बम्होरी बीका के तीन बार सरपंच चुने जा चुके हैं। रामसिंह और गोविंद सिंह की बाखर कभी एक हुआ करती थी। ग्रामीण अंचलों में पहले जाने- माने लोगों के घरों को ‘बाखर’ कहकर बुलाया जाता था।

जागीरदार परिवार के प्रताप सिंह का फूल सिंह की बहन रामसखी से विवाह और चैतन्य महाप्रभु हॉस्पिटल के संचालक प्रसिद्ध डॉ. पीएस ठाकुर का क्या है नाता ? :
सागर के चैतन्य प्रभु हॉस्पिटल के संचालक प्रसिद्ध डॉ. पीएस ठाकुर के पिता फूल सिंह (पंडा) और रामसिंह की माता रामसखी सगे भाई-बहिन हैं। पहले रिश्ते रैयतदारी देखकर हुआ करती थीं। उस समय इतने बड़े परिवार से रिश्ता होने को इस परिवार की समृद्धता को समझा जा सकता है। प्रताप सिंह और उनकी पत्नी रामसखी से रामकली, गोपी , रामसिंह, रमा और रमेशी पांच संताने हुईं।

पिता का साया सर से उठने और पारिवारिक झगड़े से रामसिंह को गहरा सदमा लगना:
रामसिंह पर जब तक पिता प्रताप सिंह का साया रहा तब तक सब ठीक चलता रहा। पिता का हाथ सर से उठने के कुछ दिन बाद परिवार में जमीन-जायजाद को लेकर विवाद होने लगते हैं। वाद विवाद के बाद जब बात मारपीट पर उतर आई। एक झगड़े में राम सिंह की माँ से मारपीट में उनके हाथ मे फेक्चर हो जाता है। जब इस झगड़े की जानकारी फूल सिंह को लगती है। वो उस बाखर को छोड़कर दूसरी जगह निवास बनाकर रहने की कहते हैं। रामसिंह पर इस झगड़े का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। वो शांत-शांत रहने लगते हैं। यहां आपको बताते चलें रामसिंह को धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होना अच्छा लगता था। उन्हें रामायण के कुछ अंश कंठस्थ हुआ करते थे। इनके मोहल्ले में गौतम पंडित जी जो शास्त्रों के बड़े ज्ञाता हुआ करते थे। इनके साथी कुअँर सिंह के पिता जिन्हें कंठस्थ रामायण और वेदों की अच्छा ज्ञान था। रामसिंह का ज्यादा समय इन दोनों के सानिध्य में गुजरा करता था। पारिवारिक विवाद और माँ से हुई मारपीट के बाद एक पढ़ा लिखा धार्मिक प्रवृत्ति का मिलनसार इंसान पूरे गांव से कट-कर रहने लगता है।

जागीरदार परिवार की प्रचलित बातें और उस पर रामसिंह का प्रभाव:
गांव में एक बात प्रचलित रहती है कि जागीरदार परिवार से आने वाले व्यक्ति की लंबरदारी वाली छाप कभी नही जाती है। पर यहां ऐसा नही था। रामसिंह के परिवार की हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ने लगती है। कोई पास जाकर बैठता तो रामसिंह वेदों और धार्मिक विषयों की बात करने लगते थे। किसी बात की चर्चा पर कहावतों को जोड़ना और सार में वेदों को लाकर सामने वाले को सीख देना उनकी शैली में शामिल हुआ करता था। गांव वाले कहते थे कि सब चीजों से मोह भंग हो गया है। घर के बाकी सदस्य जो करते रामसिंह की उस सबमें सहमति रहती थी। उनका जिम्मेदारियों से दूर चले जाना आगे जाकर इस परिवार की दुर्दशा का बड़ा कारण बन जाता है।

रामसिंह के परिवार के हालात
रामसिंह का सबसे दूर होकर रहने लगना यह ऐसे समय था जब सरकार ग्रामीण विकास को लेकर कई योजनाएं चला रही थी। परिवार की बिगड़ती माली हालत में एक समय ऐसा आया कि इनके घर मे बैठने को एक चार पाई भी नही रह गई। प्रशासन की योजनाओं से बंचित इस परिवार के हालात दिन-प्रतिदिन खराब होते चले गए। आज की स्थिति को जाकर देखें तो घर मे लाइट तो है पर एक दहलान और छोटे दो कमरों में मात्र एक बल्व लगा हुआ हैं। जहां बैठने को एक कुर्सी भी नही हो उस घर मे टीवी, फ्रिज मोबाइल और सुविधाओं का होना सोचना उस परिवार का उपहास उड़ाने जैसा है। एक टूटा चूल्हा जिसमे प्रतिदिन लकड़ी चुग-चुगकर यह परिवार सब्जी- रोटी बनाता है। खेती में बगैर साधन के जो अनाज निकलता है या उसको ठेके पर देकर जो मिल जाता है। केवल वह इनके भरण पोषण का मात्र साधन है। इस घर मे खाने पीने के लिए उपयोग किए जाने वाले 50 साल से ज्यादा पुराने टूटे -फूटे बर्तन और बिस्तर के नाम पर फ़टे पुराने चादर कम्बल दिख जाएंगे। घर इतना जर्जर हो गया कि बरसात के समय बैठने को जगह नही बचती है। जहां आए दिन विषैले सांप बिच्छु निकलकर सामने आ जाते हैं।

अतिगरीबी के चलते सुखदेव का मानसिक रूप से कमजोर लड़की से विवाह और उसके बाद के बिगड़े हालात:
रामसिंह को उनकी पत्नी सीता रानी से चार संतानें सुखदेव, बेबी, सुमरन और सुमेर सिंह हुए। आगे जाकर सुखदेव की छोटी बहिन का विवाह रिश्तेदारों ने मिलकर करवाया। परिवार की बिगड़ती माली हालत के चलते जब सुखदेव का विवाह के रिश्ते आना बंद हो गए इस स्थिति में मानसिक रूप से कमजोर लड़की से उसका विवाह हो जाता है। उससे दोनों को तीन संताने हुई पर एक रोज उसकी पत्नी घर से गायब हुई फिर वह लौटकर वापिस नही आई। सुखदेव ने उसको खोजने में कोई कसर नही छोड़ी। पुलिस से शिकायत कर वह बार-बार थाने गया जब कहीं से कोई सुराग नही मिला तो बच्चियों को वह ननिहाल भेज देता है। एक बच्चा जो नही गया उसे सुखदेव सदैव सीने से लगाकर घूमता रहता है।

सरकारी योजनाओं पर प्रशासन की घोर लापरवाही से कैसे यह परिवार तबाह हो गया :
रामसिंह के घर का सदस्य यदि बीमार पड़ा तो कभी उसके समुचित इलाज की व्यवस्था नही हो पाई। गांव वाले इससे अंदाजा लगाते कि इनके घर का वह सदस्य बहुत दिन से दिख नही रहा है। पूंछने पर पता लगता कि वह इतने दिन से बीमार चल रहा है। जब इलाज के बारे में मदद करने को पूंछा जाता है तो परिवार के सदस्य खुद के सम्मान का ध्यान रखकर आर्थिक मदद लेने के लिए मना कर देता । इस घर के रामसिंह उनकी माँ पत्नी और और एक बेटे सुमरन सिंह के बीमार होने की जानकारी गांव वालों को लगी। इलाज के लिए कब ले जाया गया। क्या बीमारी हुई। इसका पता किसी को नही लगा। गांव वालों को बस यह जानकारी लगती कि आज घर के इस सदस्य की मृत्यु हो गई है।
केंद्र और प्रदेश सरकार मिलकर किसानों और ग्रामीणों के समुचित विकास और समृद्धि के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, किसान मानधन, फसल बीमा, राष्ट्रीय कृषि विकास, आवास योजना-ग्रामीण, उज्वला, कपिल धारा राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन , मनरेगा ऐसी अन्य योजनाओं जिसकी मदद से किसानों की आय बढ़ाने, छोटे और सीमांत किसानों की बृद्धावस्था सुरक्षा, किसानों की फसल बीमा सुरक्षा, खेती की लाभकारी आर्थिक गतिविधियों और ग्रामीण भारत के विकास और आजीविका में अनेकानेक योजनाएं चला रही है। आजादी के बाद से इस परिवार को आज – तक इनमें से किसी भी योजना का लाभ नही मिल पाया है। हकदार परिवार जो अतिगरीबी रेखा से नीचे की जिंदगी जीने को मजबूर है। ऐसा परिवार इन सब योजनाओं से अब तक क्यों महरूम है ? प्रशासन के जिम्मेदार नुमाइंदों की लापरवाहियां अब किसी से छुपी हुई नही हैं। पिछड़ेपन से उबरने के लिए जागरूकता अभियान के अंतर्गत घर-घर दस्तक देना। योजनाओं को हर – घर तक पहुंचाने के झूठ का यह सबसे बड़ा पर्दाफाश हो सकता है। ऐसा भी संभव नही हो सकता कि जनता द्वारा चुनकर जाने वाला प्रतिनिधि अभी तक इस परिवार की माली और दयनीय हालात से अंजान होगा। ज्यादातर मामलों में उन पर ज्यादा ध्यान देकर चला जाता है जो एक बड़े वोट बैंक को जेब मे रखकर चलता है या वह जो इस सब पर दखल देने का माद्दा रखता है। बाकी बंचित तबका जो इन योजनाओं के लाभ का सही हकदार होता है उसका हाल रामसिंह और सुखदेव के परिवार जैसा देखने को मिल जाता है।

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