बाघ की मौत: नौरादेही वन अभ्यारण की संरचनात्मक विफलता और वन विभाग की संस्थागत जवाबदेही
सागर। ढाना परिक्षेत्र के ग्राम हिलगन के जंगल में 5-6 वर्ष के युवा नर बाघ की मौत को एक सामान्य वन्यजीव घटना मान लेना सच्चाई से आंख चुराने जैसा होगा। यह मामला न केवल नौरादेही वन अभ्यारण की जमीनी निगरानी व्यवस्था की गंभीर विफलता को उजागर करता है, बल्कि वन विभाग की संपूर्ण संरक्षण नीति और संस्थागत जवाबदेही पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है।
वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व की सीमा से महज दो किलोमीटर दूर एक संरक्षित बाघ की मौत यह स्पष्ट करती है कि संरक्षित क्षेत्र के भीतर और उसके आसपास की सुरक्षा व्यवस्था के बीच खतरनाक असंतुलन मौजूद है।
सीमा के बाहर मौत, लेकिन जिम्मेदारी से बाहर नहीं
भले ही बाघ का शव राजस्व वन क्षेत्र में मिला हो, लेकिन यह क्षेत्र नौरादेही वन अभ्यारण के प्रभाव क्षेत्र में आता है। वन्यजीव संरक्षण की दृष्टि से यह तर्क स्वीकार्य नहीं हो सकता कि अभ्यारण की भौगोलिक सीमा खत्म होते ही जिम्मेदारी भी खत्म हो जाए। बाघों के संभावित कॉरिडोर और सीमा क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करना वन विभाग की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
48 घंटे तक शव और निगरानी तंत्र की चुप्पी
बाघ का शव 24 से 48 घंटे तक जंगल में पड़ा रहना नौरादेही वन अभ्यारण की गश्ती व्यवस्था पर सीधा प्रश्नचिह्न है। यदि फील्ड अमला सक्रिय था, तो शव नजर से कैसे बचा? और यदि गश्त नहीं हो रही थी, तो यह संरचनात्मक स्तर पर निगरानी प्रणाली की विफलता मानी जाएगी।
राजस्व वन: नीति और अमल के बीच सबसे कमजोर कड़ी
राजस्व वन क्षेत्र लंबे समय से वन विभाग की नीतिगत कमजोरी का प्रतीक रहे हैं। यहां न पर्याप्त संसाधन हैं, न स्टाफ और न ही स्पष्ट जवाबदेही। इसके बावजूद बाघ जैसे संरक्षित वन्यजीव का इन क्षेत्रों में आना पहले से अनुमानित था। सवाल यह है कि क्या वन विभाग ने इसके लिए कोई विशेष रणनीति या सुरक्षा तंत्र विकसित किया था?
मूवमेंट ट्रैकिंग: दावे और हकीकत
वन विभाग कैमरा ट्रैप, गश्ती दल और इंटेलिजेंस नेटवर्क के दावे करता है, लेकिन इस घटना ने इन दावों की जमीनी सच्चाई उजागर कर दी है। यदि बाघ की मूवमेंट पर प्रभावी नजर होती, तो समय रहते अलर्ट और निगरानी क्यों नहीं बढ़ाई गई?
जांच केवल पोस्टमार्टम तक सीमित क्यों?
पोस्टमार्टम रिपोर्ट मौत का कारण बता सकती है, लेकिन वह यह नहीं बताएगी कि निगरानी में चूक कहां हुई। नौरादेही वन अभ्यारण और वन विभाग की जिम्मेदारी है कि वे फील्ड स्टाफ की भूमिका, गश्ती रजिस्टर, बीट रिपोर्ट और निर्णय प्रक्रिया की समानांतर जांच कराएं।
संरक्षण बनाम जवाबदेही
नौरादेही वन अभ्यारण का प्रबंधन जमीनी स्तर पर जवाबदेह है, लेकिन उससे बड़ी जिम्मेदारी वन विभाग की है, जो नीति निर्माण, संसाधन आवंटन और निगरानी का दावा करता है। यदि एक युवा बाघ की मौत के बाद भी जिम्मेदारी तय नहीं होती, तो यह पूरी संरक्षण व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न होगा।
अब सवाल सीधे हैं
क्या नौरादेही वन अभ्यारण में फील्ड-लेवल जवाबदेही तय की जाएगी?
क्या वन विभाग सीमा क्षेत्रों में बाघ सुरक्षा को लेकर अपनी रणनीति की समीक्षा करेगा?
या फिर यह मामला भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ फाइलों में दफन हो जाएगा?
बाघ केवल एक वन्यजीव नहीं, बल्कि भारत की संरक्षण नीति की कसौटी है। यदि नौरादेही वन अभ्यारण और वन विभाग इस घटना से सबक नहीं लेते, तो भविष्य में ऐसी मौतें केवल आंकड़ों में जुड़ती रहेंगी और जिम्मेदारी हमेशा की तरह अनिश्चित बनी रहेगी।











