सागर शहर आज उस खामोशी का गवाह है जिसके पीछे दहशत की एक कहानी छिपी है।
यह कहानी है एक ऐसी गैंग की जिसे शहर में लोग ‘प्लानर गैंग’ के नाम से जानते हैं। यह गैंग पहले लोगों के घरों पर कब्ज़ा करने की कोशिश करती थी, और जब कोई विरोध करता, तो उस पर हमला कर देती थी। फिर जनवरी 2025 में, इनकी दुस्साहस की हद तब पार हुई जब गौंड बाबा मंदिर तक को नहीं छोड़ा गया।
पहले कब्ज़े की कोशिशें, फिर हमला
घटना की शुरुआत उन परिवारों से हुई जिनके घरों की जमीन को लेकर विवाद खड़ा किया गया।
इन परिवारों पर दबाव बनाकर कब्ज़ा करने की कोशिश की गई।
विरोध करने पर मारपीट और तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आईं।
पीड़ितों ने कई बार पुलिस से शिकायत की, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इसी ढील ने इस गैंग के हौसले और बढ़ा दिए।
जनवरी 2025 में मंदिर बना निशाना
सागर के बड़ा बाजार स्थित गौंड बाबा मंदिर पर इन लोगों ने हमला किया।
मूर्तियों को तोड़ा गया, मंदिर में तोड़फोड़ की गई, और जड़िया परिवार पर भी हमला बोला गया।
जो लोग बचाने पहुँचे, उन पर भी बेरहमी से वार किए गए।
यह हमला न सिर्फ एक धार्मिक स्थल पर, बल्कि सागर की आस्था और सामाजिक एकता पर भी हमला था।
चार गिरफ्तार, 40 अज्ञात आरोपी अब भी खुले
पुलिस ने शुरुआती जांच में चार आरोपियों को गिरफ्तार किया, जबकि 40 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। लेकिन 10 महीने बीत जाने के बाद भी बाकी आरोपियों की न तो पहचान हुई, न कोई नई गिरफ्तारी।
पुलिस का बयान आज भी वही —
“जल्द गिरफ्तारी होगी।”
सवाल यह है, जल्द’ आखिर कब?
क्या अपराधियों को किसी का संरक्षण मिला हुआ है?
जनता में नाराज़गी, पुलिस पर सवाल
पीड़ितों का कहना है कि उन्होंने सभी वीडियो और सबूत पुलिस को सौंपे थे,
मगर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। शहर में आज यह चर्चा आम है कि इस गैंग के पीछे किसी प्रभावशाली व्यक्ति का हाथ है।
लोग पूछ रहे हैं,
अगर मंदिर पर हमला करने वाले खुले घूम रहे हैं, तो आम नागरिक कितने सुरक्षित हैं?”
‘एकाधिपत्य का षड्यंत्र’ अब खुलने लगा है
सागर में लंबे समय से चल रहे राजनीतिक और सामाजिक ‘एकाधिपत्य’ की परतें अब खुलने लगी हैं।
लोग कह रहे हैं,
“लाख लिबास बदल लो, भागवत के नाम पर अब जनता को गुमराह नहीं किया जा सकता।”
जनता अब समझ चुकी है कि यह सिर्फ ज़मीन या मंदिर का मुद्दा नहीं,
बल्कि सत्ता, प्रभाव और संरक्षण का खेल है।
अति का अंत निश्चित है
जनता अब मौन नहीं है। सागर की गलियों में एक ही सवाल गूंज रहा है,
10-11 महीने बाद भी बाकी आरोपी क्यों आज़ाद हैं?
क्योंकि जब आस्था पर हमला होता है और कानून खामोश रहता है,
तो अपराधी नहीं, व्यवस्था दोषी कहलाती है।











