सागर। मध्यप्रदेश की राजनीति में सागर जिला हमेशा से सत्ता का केंद्र रहा है।
कभी विधायक भूपेंद्र सिंह को “प्रदेश का सेकेंड सीएम” कहा जाता था।
उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि भाजपा में गृह मंत्री रहते हुए उनका प्रभाव सागर से लेकर राजधानी तक महसूस किया जाता था।
पर अब हालात बदल चुके हैं।
जिले की सत्ता का असली केंद्र आज मंत्री गोविंद सिंह राजपूत माने जाते हैं।
भूपेंद्र सिंह का दौर और उनका दबदबा
उस दौर में सागर से दो कैबिनेट मंत्री थे।
गोपाल भार्गव के समर्थक खुलकर तो नहीं, लेकिन भीतर ही भीतर भूपेंद्र सिंह के प्रभाव से असहज थे।
हालात ऐसे थे कि
जहां गोपाल भार्गव को छोटे कामों के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था, वहीं भूपेंद्र सिंह के कहने मात्र से बड़े से बड़ा काम हो जाता था।
उधर कांग्रेस में “किला कोठी” यानी गोविंद सिंह राजपूत का कद लगातार बढ़ रहा था।
गोविंद समर्थक खेमा सक्रिय था,
जबकि कुछ लोग जो खुद को पार्टी में उपेक्षित मानते थे,
वे अंदरखाने इसका विरोध करते दिखाई देते थे।
उस दौर में गोविंद सिंह से ज्यादा चर्चा में हीरा सिंह जिन्हें लोग “मजले अंकल” के नाम से जानते हैं, रहते थे।
2018 में बदली सत्ता की दिशा, दीपाली होटल का सन्नाटा
2016–17 से साफ़ होने लगा था कि सत्ता परिवर्तन की आहट है। चुनाव आते-आते कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह देखते ही बनता था, और आखिरकार 2018 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी कर ली।
इसका असर सागर पर भी पड़ा।
इससे जुड़ा एक वाक्या आज भी जिले के राजनीतिक गलियारों में याद किया जाता है।
भूपेंद्र सिंह की होटल दीपाली में 2018 के चुनाव परिणाम देखने के लिए बड़ी स्क्रीन, खाने-पीने और जश्न की पूरी व्यवस्था की गई थी।
मतगणना स्थल तक जाने वाले पत्रकारों ने होटल में खुशी का माहौल देखा।
लेकिन कुछ ही घंटों बाद जब कांग्रेस की सत्ता वापसी हुई,
तो वहीं दीपाली होटल सन्नाटे में डूब गई।
पत्रकार आज भी कहते हैं।
सत्ता की चाबी जब हाथ से जाती है, तो आबाद आशियाना भी काटने को दौड़ता है।
गोविंद सिंह का उभार और सिंधिया की बगावत
कांग्रेस की जीत के बाद सागर जिले में दो सत्ता केंद्र बने, एक ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमा से कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह,
दूसरे कमलनाथ खेमा से हर्ष यादव।
लेकिन यह संतुलन अधिक समय तक नहीं टिका। 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने प्रदेश की राजनीति की दिशा ही बदल दी।
इस पूरी बगावत में गोविंद सिंह राजपूत की भूमिका सबसे निर्णायक रही।
सिंधिया ने जिस भरोसे के साथ अपने 26 विधायकों को इस्तीफा दिलवाया, उसमें गोविंद सिंह उनका सबसे बड़ा सहारा बने।
भूपेंद्र सिंह बनाम गोविंद सिंह .. भाजपा के भीतर की खींचतान
सिंधिया की बगावत के बाद शिवराज सिंह चौहान की वापसी हुई,
लेकिन अब भाजपा दो ध्रुवों में बंटती दिखने लगी,
एक तरफ भूपेंद्र सिंह,
दूसरी ओर गोपाल भार्गव और गोविंद सिंह।
धीरे-धीरे यह असहमति मुख्यमंत्री और फिर पार्टी नेतृत्व तक पहुँच गई। भूपेंद्र सिंह के बढ़ते प्रभाव को लेकर
गोपाल भार्गव, गोविंद सिंह, गौरव सिरोठिया और विधायक शैलेन्द्र जैन
ने शीर्ष नेतृत्व तक शिकायतें पहुंचाईं।
स्थिति बिगड़ने से पहले भूपेंद्र सिंह को समझाइश दी गई।
2023 के चुनाव और सत्ता समीकरणों का पुनर्गठन
2023 के विधानसभा चुनाव आते-आते यह स्पष्ट था कि
शिवराज सिंह को फिर मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाएगा।
मोदी-शाह तक सागर जिले के अंदरूनी राजनीतिक मतभेदों की खबरें पहुँच चुकी थीं।
चुनाव परिणाम के बाद मोहन यादव मुख्यमंत्री बने और सबसे बड़ा झटका यह रहा कि
न तो भूपेंद्र सिंह और न ही गोपाल भार्गव को मंत्री बनाया गया।
इसके विपरीत,
गोविंद सिंह राजपूत को जिले के एकमात्र कैबिनेट मंत्री के रूप में सबसे बड़ा पावर सेंटर माना गया।
वर्तमान सत्ता समीकरण: गोविंद सिंह शीर्ष पर
आज की राजनीतिक तस्वीर साफ़ है,
सागर जिले की सत्ता का केंद्र अब गोविंद सिंह राजपूत हैं।
वे ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमा के प्रमुख नेता हैं और
मुख्यमंत्री मोहन यादव भी उन पर विशेष भरोसा करते हैं।
प्रदेश की कैबिनेट और संगठन दोनों में उनकी भूमिका मज़बूत है।
वहीं भूपेंद्र सिंह, अपने अनुभव और जनाधार के बावजूद,
वर्तमान सत्ता समीकरणों में पीछे दिखाई देते हैं।
निष्कर्ष
भूपेंद्र सिंह और गोविंद सिंह, दोनों के पास राजनीतिक कुशलता और जनसंपर्क की अपनी अलग पहचान है,
लेकिन वर्तमान परिस्थिति में सागर जिले की सत्ता का असली केंद्र गोविंद सिंह राजपूत हैं।
राजनीति का यही स्वभाव है, कब कौन हावी हो जाए, इसका अनुमान लगाना हमेशा कठिन होता है।












