1058 दिन से निराहार केवल माँ नर्मदा के जल पर आश्रित हैं तपस्वी महान योगी गुरु समर्थ दादा
बिना अन्न के 1058 वे दिन सागर पहुँचे तपस्वी दादागुरु यहां भी लिया केवल दो घूंट नर्मदा जल
मां का नाम बेबस कैसे हो सकता है माँ तो सामर्थ्य का पर्याय है – समर्थ दादागुरु
पहले झील पर, अब बेबस पर, इसके बाद क्या आप ट्रेन से पानी लाने की प्रतीक्षा में हैं। वह दिन भी आएगा – समर्थ दादा गुरु
“नदी है तो सदी है” विषय पर संवाद कर लोगों को प्रकृति के बारे में जागरूक करने, मां नर्मदा के जल की शक्ति का परिचय देने के लिए 1058 दिन से अन्न तक त्यागकर केवल नर्मदा जल पर जीवित रहने वाले तपस्वी संत समर्थ दादा गुरु शनिवार को सागर पहुंचे। उन्होंने कहा कि आप किस नदी पर निर्भर हैं? बेबस पर! आखिर मां का नाम बेबस कैसे हो गया, बेबस तो आप हैं जो नदियों और प्रकृति के लिए खड़े नहीं होते और मिटने बर्बाद होने देते हैं। आरोप और प्रत्यारोप नहीं की किसने क्या किया। बेबस के लिए कोई खड़ा नहीं होगा झील के लिए कोई खड़ा नहीं होगा।
क्या तुम इसका इंतज़ार कर रहे हो की ट्रेनों से पानी
आएगा, तो वह भी हो जाएगा। पहले झील को नष्ट होने दिया अब बेबस पर निर्भर हो उसके बाद क्या करोगे। संस्कृति को जाती संगठनों में मत बांटो।
हमारा धर्म धरा पर केंद्रित है इसलिए किसी व्यक्ति द्वारा बनाया गया नहीं है।
उन्होंने सनातन धर्म को प्रकृति से जोड़कर समझाते हुए भगवान की लीलाओं को समझाते हुए बताया कि संस्कृति को जाती संगठनों में मत बांटो। हमारा धर्म धरा पर केंद्रित है इसलिए किसी व्यक्ति द्वारा बनाया गया नहीं है।
उनका संवाद कार्यक्रम सागर के सिरोंजा स्थित स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय में हुआ। उन्होने 1 बजकर 55 मिनिट पर बोलना शुरू किया इससे पहले उन्होंने नृत्यनाटिका देखते एक बार एक घूंट नर्मदा जल ग्रहण किया। इसके बाद बोलते हुए बिजली गुल होने पर एक घूंट जल और ग्रहण किया।
उन्होंने अपने वक्तव्य की शुरुआत “जय ओम जय ओम जय माँ” से करते हुए कहा कि “मां मां मां” ऐसा कोई भी नहीं होगा जिसने यह बोल न बोले हों। जीवन का हर क्षण बहुमूल्य है लेकिन संत का क्षण और अन्न का कण व्यर्थ नहीं करना चाहिए। गुरु का क्षण जीवन को दिशा दे सकता है।
बुंदेलखंड की पावन धरा सागर है हम जानते हैं यह माटी धैर्य और शौर्य का प्रतीक है। माटी बोलती है, माटी के बोल हमारे जीवन को अनमोल कर देते हैं। उन्होंने कहा कि हम प्रवचन के लिए नहीं बैठे हैं। हम एक संवाद के लिए बैठे हैं। यह संवाद नया नहीं है यह युगों से चल रहा है। एक ऐसा संवाद जो व्यक्ति को ही नहीं पूरे समाज को आत्मनिर्भर बनाता है।
उन्होंने अंत मे कहा कि “जबलपुर से यहां तक एक बूंद जल नहीं लिया यहां पहुंचकर दो घंटे में दो घूंट पानी पिया है। यह तपस्या यह है अमरकंटक वाली का चमत्कार है”।
नौरादेही अभ्यारण्य और लाखाबंजारा झील को बताया बड़ी संपदा
उन्होंने कहा कि जबलपुर से आते समय जैसे ही नौरादेही अभ्यारण्य में प्रवेश कर भ्रमण किया। टौ लगा प्रदेश और इस देश का प्राण है नौरादेही। विश्व की धरोहर है ये अभ्यारण्य। हवा में नर्मदा का एहसास हुआ क्योंकि उन्ही की तरह ही यह भी जीवन देने वाला है। जिसने जल के लिए अपने बच्चों का बलिदान दे दिया। फिर सागर आया टौ झील का स्मरण हुआ और एक ऐसे लाखा बंजारा का चरित्र सामने आता है। आपको उस प्रकृति को उस झील को बचाने के लिए संकल्पित होना होगा। आज उस झील का पानी जानवर भी नहीं पी सकते जो कभी औषधि की तरह रहा। द्वारिका की तर्ज पर नगर खत्म होते चले जा रहे हैं क्या इस बुंदेलखंड की माटी भी खत्म हो जाएगी। आज एक ऐसा घर बता दें झील के पानी से किसी एक घर में भोजन बनता है। इसे ठीक करना है लेकिन यह कैसे संभव है यह राजनीतिक विषय है। लेकिन जब बात प्रकृति आये तो सबसे ऊपर उठकर देखना होगा।
नदी संवाद
उन्होंने कहा कि जीवन को जो दिशा देता है वहः नदी संवाद है। एक सक्षम और समर्थ व्यक्तित्व के लिए यह एक संवाद युगों से चला आ रहा है। प्रकृति का व्यक्ति से संवाद। आज ऐसा ही एक संवाद मुझे आपसे करना है। तब जब देश, दुनिया और समाज तरह तरह की व्याधियों, आपदाओं, संक्रमण और विघ्न बाधाओं के बीच है। यह संवाद गीता की तरह है। कुरुक्षेत्र में हुए गुरु गोविंद के संवाद की तरह ही यह संवाद है।
गंगापुत्र भीष्म ने भी किया मां गंगा से संवाद
ये देश नदियों का है गंगा का है नर्मदा का है यमुना का है गोदावरी है। दुनिया के लिए नदी बहता हुआ पानी है। लेकिन दुनिया में हम ही हैं, हमारे लिए नदी साक्षात भगवती है। हम उसे शक्ति और मां के रूप में पूजते हैं। इससे व्यवस्था भी है विकास भी है। इसलिए नदी है तो सदी है। गंगापुत्र भीष्म का चरित्र आदर्श चरित्र है। जिसने गंगा के साथ संवाद प्रारंभ किया। युग साक्षी है कभी यमुना से संवाद गोविंद ने किया। कभी गोदावरी से राम ने संवाद किया।
इस धारा को भी हम मां कहते हैं। जाती पंथ संप्रदायों में हम बट सकते हैं लेकिन माटी से नहीं बटते एक होते हैं।
धारा धेनु के लिये हुआ अवतार
सभी ने दो दिन पहले जन्माष्टमी मनाई कृष्ण काल्पनिक नहीं वास्तविक चरित्र है। थोड़ी देर के लिए चिंतन करें उसने अवतार क्यों लिया। धरा धेनु के लिए उन्होंने अवतार लिया। बच्चों से पूछिए बताओ कौन सी कृष्ण लीला तुमको दिखयाय देती है। बच्चे ने कहा माखन खाते हुए। तो जिसने माखन खाया उसने यमुना तट की माटी को भी खाया और यशोदा के माध्यम से संदेश दिया। मुख में मिट्टी को खाता है और ब्रम्हांड दिखाते है। यह मां को शक्ति का प्रदर्शन नहीं है। इस लीला के पीछे का रहस्य था की माटी हमारा अस्तित्व है। आज सारी दुनिया यही बात कर रही है मिट्टी बचाओ वह मेरा कृष्ण था जिसने सबसे पहले यह संदेश दिया था।
जब गुरु और गोविंद लीला करता है युग साक्षी होता है। आज समाज माटी में ज़हर मिलाकर समाज जीने की बात कर रहा है। तो मान लीजिए हमें संक्रमण और आपदाओं से कोई नहीं बचा सकता।
“भगवान की हर लीला प्रकृति से जोड़ती है आत्मनिर्भर बनाती है जीना सिखाती है।”
मां वृक्षों की पूजा करती है
मैंने मां को देखा उसे तुलसी के पौधे से प्रार्थना करते देखा। वह बरगद, पीपल, आंवले की पूजा करती है। मेरे तो नारायण ने भी अपने चरित्रों लीलाओं में बताया वृक्ष ही प्रत्यक्ष है। जो जीवन शक्ति का संचार करता है हम उसे ईश्वर कहते हैं। जब तुम एक वृक्ष को देखोगे तुम जान जाओगे वह प्राण वायु और जीवन शक्ति का संचार करता है।
त्रेता में कामदगिरि से प्रार्थना करते हैं वह मेरे राम हैं। जो गोवर्धन को पूजते हैं वह मेरे कृष्ण हैं। शब्री के जूठे बेर खाकर जातिपाति का भेद मिटाते हैं वही तो हैं राम जो पोटली में रखकर वनवन फिरते हुए भी अयोध्या की माटी को पूजते हैं।
पातालकोट में बिताया कोरोना का चातुर्मास
छिंदवाड़ा से 75 किलोमीटर दूर स्थित है। पातालकोट घाटी। दादागुरु ने बताया कि संक्रमण काल के चातुर्मास में मैं पातालकोट में था। वहां हमने देखा वन में रहने वाला स्वच्छंद भयमुक्त जी रहा था। वहीं शहर जहां पैसों की होड़ लगी है जहां पैसों के लिए व्यक्ति हर कर्म करने को तैयार हो जाता है। शहरों ने अपने दर्वाजों को बंद कर लिया। पातालकोट महोत्सव कर चातुर्मास यहीं व्यतीत किया। मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिए वहां की घांस जो मिट्टी को पकड़कर रखती है। उसे अलग अलग क्षेत्रों में रोपकर मिट्टी का क्षरण रोका।
नोट जीन देने का वादा नहीं करता
उन्होंने दर्शक दीर्घा में श्रोताओं में से किसी से एक नोट देने के लिए कहा कि मैं आपको पैसा दिखता हूँ। उन्हीने पैसे और वृक्ष की शक्ति की तुलना करते हुए बताया कि इसपर लिखा है मैं धारक को अदा करने का वचन देता हूँ। लेकिन नोट में यह नहीं लिखा की जीवन देने का वादा करता हूँ। वृक्ष हमें प्राणवायु देता है प्राणशक्ति देता और जो प्राणों का संचार करे वही ईश्वर है।
नदियों में केवल नर्मदा की परिक्रमा क्यों होती है
दुनिया मे ऐसा कोई पथ नहीं जहां चलना साधना है और बैठना उपासना है। इतनी सहज साधना और उपासना सिर्फ नर्मदा में ही मिलेगी। यह साधारण नदियां नहीं असाधारण शक्तियां हैं। परिक्रमा एक साधना एक जागरण है। केवल नर्मदा नदी की ही परिक्रमा होती है। क्योंकि नर्मदा सभी तीर्थों में अग्रज है इसीलिए नर्मदा की परिक्रमा की जाती है। ब्रम्हांड के ग्रहों को देखो हम गौर करेंगे हमारा जीवन चक्रों पर आधारित है। काल चक्र, जीवन चक्र, एक सायकिल में ही जीव, ब्रम्हांड सब जुड़े हैं।
इन्होंने भी किया संबोधित
डॉ. अनिल तिवारी – सौभाग्य की बात है जो समर्थ दादागुरु हमारे प्रांगण में पधारे हैं। सागर की धरा सागर के जनजन उनके नदी है तो सदी है के संकल्प को पूरा करने में तत्पर हैं।
डॉ. अजय तिवारी- शरीर ऊर्जा का श्रोत होता है उसका साक्षात दर्शन हम कर पा रहे हैं। समर्थ दादागुरु के सानिध्य में हम उस ऊर्जा का अनुभव कर पा रहे हैं। अन्नमय कोष, प्राणमय कोष आध्यात्ममय कोष से ऊपर उठकर केवल आनंदमय कोष तक पहुंचे हैं।